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२६५ - २६६ ] सुधाकर-चन्द्रिका। ५७५ विक्रम के वाद उज्जयिनी में राजा भोज हुआ है इस ने धारा ननरौ बसाई है और यह बडा ही संस्कृतानुरागी था। भोज-प्रबन्ध में दूस को बडी बडी कथा लिखी हुई है। सब पूछने लगे कि योगी, अपनी जाति, जन्म-स्थान और नाम को कह (बताओ) (क्योंकि हम लोगों को बड़ा अचरज है) जहाँ रोने का स्थान है वहाँ कह किस अभिप्राय से हमा ॥ २५५ ॥ चउपाई। का पूँछह अब जाति हमारौ। हम जोगी अउ तपा भिखारी॥ जोगिहि कवन जाति हो राजा। गारिहि कोह न मारहि लाजा॥ निलज भिखारि लाज जिन्ह खोई। तिन्ह के खोज परउ जनि कोई ॥ जा कर जौउ मरइ पर बसा। सूरौ देखि सो कस नहिँ हँसा ॥ आजु नेह सउँ होइ निबेरा। आजु पुहुमि तजि गगन बसेरा ॥ आजु कया-पिंजर बंध टूटा। आजु परान-परेवा आजु नेह सउँ होइ निरारा। श्राजु पेम सँग चला पिधारा ॥ दोहा। सरि पूजौ कइ जो चलउँ मुख रात। बेगि होहु मोहिँ मारहु का चालहु बहु बात ॥ २६६ ॥ का = क्यों = किमर्थम् । पूंछह = पूँछते हो = (पृच्छन्ति ) पूछद् का विध्यर्थ में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन । अब = इदानीम् = अधुना । जाति = ज्ञाति। हमारौ मेरी का बहु-वचन । हम = हौं (अहम् ) का बहु-वचन । जोगी = योगी। अउ = अपर = और । तपा = तपस्खौ = तपसौ । भिखारी= भिक्षुक । जोगिहि = योगिनः योगी को । कवन = क्व नु = कौन । हो = अहो सम्बोधन। गारिहि = गालेः = गाली से। कोह = क्रोध। मारहि मारणेन =मारने से । लाजा= लज्जा। निलज = निर्लज्ज । जिन्ह = जिन्हों ने। खोई = खोदू (क्षयति) का भूत-काल, स्त्री-लिङ्ग, एक-वचन, प्रथम-पुरुष । तिन्ह के = तेषाम् । खोज = अन्वेषणे = ढूँढने में । परउ = पतेत् = पडे । जनि = जातु न = कदाचित् न = मत । कोई = कोऽपि । जा कर जिम का। छूटा॥ आजु अवधि - यस्य