१५-१६] सुधाकर-चन्द्रिका। २१ का एक श्राभूषण। पारा= अदल = न्याय । नउसेरवाँ = नौशेरवाँ = एक बादशाह । श्रादिल = न्यायौ। श्राहा साबमो = वाह वाह = प्रशंसा । दुनिबाई = दुनिया में । नाँथ = नथ = स्त्रियों के नाक सकता है। सोन = सोना = खर्ण। उछारा = उछालते हैं लोकाते हैं । गोरू = गाय बैल इत्यादि जन्तु, जिन्हें पाल कर लोग चराते हैं । रंगहिँ रेंगते हैं = चलते हैं। नौर = जल । खौर = क्षौर = दुग्ध । निरारा = अलग । निश्राउ न्याय । बरौ = बलौ। गाँग = गङ्गा । जउँन यमुना॥ (शेर शाह के समय में ) पृथ्वी में जैसा न्याय होता है उस को कहता हूँ, कि चलते कोई चौंटे को भी नहीं दुःख देता है। जो कि नौशेरवाँ न्यायो कहा गया है, शाह (शेर शाह) के न्याय को बराबरौ में वह भी नहीं है, अर्थात् शेर शाह नौशेरवाँ से भी अधिक न्यायौ है ॥ उमर (जिस को चर्चा १२ 4 दोहे में कर आये हैं) के ऐसा (शेर शाह ने ) न्याय किया। मगरौ ( मब) दुनियाँ में आहा आहा हो गया, अर्थात् जहाँ देखो तहाँ शाह के न्याय के प्रशंसा की ध्वनि हो रही है ॥ (राह में) पडौ (गिरौ) हुई नथ को कोई ( उठाना तो दूर रहे ) छू नहीं सकता। मार्ग में मनुष्य लोग सोने को उछालते हैं, अर्थात् सोने को लोकाते हुये चलते हैं, परन्तु किसी को सामर्थ्य नहीं कि छौने ॥ गोरू और सिंह एक-ही वाट (राह) में चलते हैं, अर्थात् बादशाह के न्याय के भय से आपस का वैर भाव सब छोड दिये हैं। दोनों (गोरू और सिंह) एक-हौ घाट पर पानी पीते हैं ॥ (शेर शाह) दर्बार में पानी और दूध को छान करता है, (ऐसा छान करता है कि) दूध पानी सब अलग अलग कर देता है, अर्थात् में पानी मिल जाने से दूध-हौ ऐसा समझ पडता है, उसी प्रकार जिस मोकद्दमें और सच दोनों मिल कर सब सच्च ही समझ पडता है, वहाँ भी खूब छान कर झठ और सच्च अलग अलग कर डालता है॥ धर्म न्याय और सत्य-भाषा (सत्यवचन) से चलता है। दुर्बल और बली को एक सा रखता है ॥ सब पृथ्वी (पृथ्वी पर के सब लोग) हाथ जोर जोर कर आशीर्वाद देती है, कि जब तक गङ्गा और यमुना में जल रहे तब तक वह जो माथ (सब के मस्तक के सदृश ) है सो अमर रहे ॥ १५ ॥ चउपाई। पुनि रुपवंत बखानउँ काहा। जावत जगत सबइ मुख चाहा ॥ ससि चउदसि जो दई सवाँरा। ते-हू चाहि रूप उजिारा॥ ।
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