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२६४ ] सुधाकर-चन्द्रिका । ५७१ आप का। घट = का। - - जग= जगत् लोक । नौंऊ = निंबू = निबुत्रा । तई ते = से । होय = होय = होता है (भवति)। छारा छार चार राख = भस्म। कहउ = कहो (कथयत)। जादू गत्वा=यात्वा =जा कर। अब = दूदानीम् = अधुना। मोर = मेरा=मम । सँदेसू= सन्देश = संदेसा । तजहु = तज देशो= छोड देत्रो (त्यजथ)। जोग योग । होहु = होश्रो (भवथ )। नरेसू = नरेश = राजा। जनि न= मत। जानहु = जानदू (जानाति) का विध्यर्थ में मध्यम- पुरुष, बहु-वचन । हउँ = अहम् = मैं । मऊ = से = तें । दूरी= दूर । ननहि = नयनों नयनयोः= श्राखाँ। माँझ = मध्य = में। गडी गड (गडति) का भूत-काल, खौलिङ्ग, एक-वचन । वह = सा। सूरौ= शूलो फाँसी। तुम्ह = तुम्हारा परसेत प्रखेद = पसौना। घटे = कम हो। घट = शरीर। केरा मोहिँ = मेरे = मम । जिउ = जीव = प्राण । घटत= घटते = कम होते = निकलते । लागदू = लगता है (लगति), यहाँ लगेगा। बेरा= वेला = समय = काल । कहँ = को। राज-पाट =राज-पट्ट =राज-सिंहासन । महूँ मैं साजा =माज (मज्जयते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । दुबउ = दोनों = द्वयोः । राजा पति ॥ जउँ= यदि =जो। जिअहि जौएँ (जौवेयम् )। मिलि = मिल कर = मिलित्वा। कलि = केलि = क्रीडा = भोग-विलास। करहिं = करें (कुर्याम् )। तो = तो तर्हि । एकदू = एक हो। दोउ दोनों = द्वावपि । पित्र= प्रिय = पति । होउ होवे = भवेत् । किछु = कुछ = किञ्चित् ॥ (हौरा-मणि से) योगी (रत्न-सेन) को अमर-करणी सुन कर, (पद्मावती को) विरह-व्यथा को मृत्यु हट गई । प्राण कमल-कलो हो कर (फिर ) विकशित हुआ, जानौँ सूर्य देख कर मौत कूट गया। (पद्मावती कहने लगी कि) यदि ऐसा सिद्ध हो गया, तो (अब) पारे को कौन मारे, जो कि नीबू के रस से भस्म हो जाता है, अर्थात् जब सिद्ध हो गया, तो उसी मिलने से सब मनोरथ सिद्ध हो जायगा, पारे के मारने से क्या प्रयोजन, क्योंकि मारा हुआ पारा तो नीबू के रस से भस्म, अर्थात् राख हो जाता है; फिर उस में कुछ शक्ति ही नही रहती। वैद्य शास्त्र में पारा मारने की विधि लिखी हुई है, उस विधि से बडे प्रयाम से पारा मारा जाता है। मरे हुए पारे के सेवन से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। मरे हुए पारे को बडे यत्न से रखना पडता है। यदि उस में नौबू का रस पड जाय, तो वह राख हो जाता है; - .