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५६४ पदुमावतौ । २४ । मंत्री-खंड । [२६० - २६१ अब प्राण छूटने चाहता है, शीघ्र (रत्न-सेन को) देखाश्री (शीघ्र उसे) ले श्राश्रो । रावण के बेटे मेघनाद को ब्रह्म-दत्त शक्ति ( माँगो) प्रसिद्ध है जिस के श्राघात से लक्ष्मण अचेत हो गए थे। उन के जिलाने के लिये हनुमान द्रोणाचल को उठा लाए थे जिस पर कि सजीविनी जडौ थी। रामायण में यह कथा प्रसिद्ध है ॥ २६ ॥ चउपाई। हौरामनि भुइँ धरा लिलाटू । तुम्ह रानौ जुग जुग सुख पाटू ॥ जेहि के हाथ जरौ अउ मूरौ। सो जोगी नाहौँ अब दूरी ॥ पिता तुम्हार राज कर भोगी। पूजा बिपर मरावइ जोगी पर्वरि पंथ कोतवार बईठा। पेम क लुबुध सुरंग पईठा॥ चढत रइनि गढ होइ गा भोरू। आवत बार धरा का चोरू॥ अब लेइ देन गए ओहि सूरौ। तेहि सौँ अगाह विथा तुम्ह पूरी ॥ अब तुम्ह जीउ कया वह जोगी। कया क रोग जान पइ रोगी ॥ 11 दोहा। - =स:- रूप तुम्हार जौउ लेइ आपन पिंड कमावा फेरि । आपु हेराइ रहा तेहि खंडहि काल न पावइ हेरि ॥ २६१ ॥ हौरामनि = हीरामणि (शुक)। भुइँ = भुवि = पृथ्वी में = जमीन में । धरा- धरद (धरति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । लिलाटू = ललाट = मस्तक । = आप = आत्मा। रानी = राजौ। जुग = युग । पाटू = पाट = पट्ट = सिंहासन । जेहि = जिस । हाथ = हस्त । जरी= जडी। अउ = और। मूरौ = मूली। सो वह । जोगी = योगी । नाही = नहौँ = न हि । अब = अधुना = इदानीम् । दूरी दूर। पिता = बाप। तुम्हार=तुम्हारा श्राप का। राज= राज्य । कर = का। भोगौ = भोग करने-वाला। पूजद = पूजयति = पूजता है। विपर -विप्र = ब्राह्मण। मराव = मारयति मरवाता है। परि = पर्वरी= पौरी= पुरद्वार। पंथ पन्थाः =राह । कोतवार = कोतवाल = कोटपाल । बईठा बैठा = बदद् वा बैठद (विशति ) का भूत- काल, पुंलिङ्ग, एक वचन। पेम = प्रेम । क = का । सुबुध = लुब्ध = लोभी। सुरंग सुरुङ्गा। पईठा पदठा = पैठा = पठद् वा पैठद ( प्रविशति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । -

बठा

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