२५३] सुधाकर-चन्द्रिका। ५४७ बिरहा कठिन काल कई कला। बिरह न सहइ काल पर भला ॥ काल काढि जिउ लेइ सिधारा। बिरह काल मारे पर मारा ॥ बिरह आगि पर मेलइ अागौ। बिरह घाउ पर घाउ बजागौ ॥ बिरह बान पर बान बिसारा। बिरह रोग पर रोग सँचारा॥ बिरह साल पर साल नवेला। बिरह काल पर काल दुहेला ॥ दोहा। तन रात्रोन होइ गढ चढा बिरह भण्उ हनुवंत । जारे ऊपर जारई तजइ न कइ भसमंत ॥ २५३ ॥ पदुमावति = पद्मावती। सँग = संग। सखौ = सहेलो। सयानी सज्ञाना=चतुर। गनि-क गणयित्वा गन कर । नखत = नक्षत्र । पौर = पौडा । ममि = शशि = चन्द्र। जानौ = जान (जानाति) का भूत काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । जान हि =जानन्ति: जानती हैं। मरम = मर्म = भेद। कवल = कमल । कर = का। कोई कुमुदिनी। देखि दृष्ट्वा = देख कर । बिथा = व्यथा पीडा। बिरहिनि = विरहिणौ । क = को। रोश्रद (रोदिति ) का भूत-काल, स्त्री लिङ्ग, बहु-वचन। विरहा विरह = वियोग। कठिन = कठोर । काल = प्राण लेने-वाला = यम-दूत । कला अंशः = अवतार। सह- सहते = सहता है। पर = परन्तु । भला = वर = अच्छा। काढि = कर्षयित्वा = खौंच कर। जिउ जीव । लेद = ले कर (श्रालाय)। सिधारा = सिधार = सिधार (सेधति ) सिधारता है = चला जाता है। मारे= मारने । पर= उपरि ऊपर। मारामार = मार (मारयति) मारता है। श्रागि = श्राग= अग्नि। मेलदू = मेलयति मेलता है = डालता है। श्रागौ = आग । घाव । बजागी = वज्राग्नि विजली को श्राग । बान = वाण । बिसारा = विमार = विसार (विसारयति) = विशेष कर सारता है = विशेष कर फेंकता है। संचारा = संचार = संचार (सञ्चालयति) संचारता है = फैलाता है। साल = शाल=शल्य = नवेला = नवल नया । दुहेला = दुहेल = भयङ्कर कठिन ॥ तन = तनु = शरीर। राश्रोन =रावण। होद = होदू = भवति = है। गढ दुर्ग = किला । चढा = चढद् (उच्चलति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । भएउ = 1 घाउ= घात=चत = दुःख। गाढ=
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६६५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।