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१८ पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [१३ किन्नरवर्ष, हरिवर्ष, कुरुवर्ष, हिरण्मयवर्ष, रम्यकवर्ष, भद्राश्ववर्ष, केतुमालकवर्ष और इलावृत) में ( उस के आगे ) बहादुरों को नवाई हुई अर्थात् बहादुरों को नौचा खाना पडा। और (उस के आगे ) सातो द्वीप ( जम्बूद्वौप, शाक, शाल्मल, कुश, क्रौञ्च, गोमेदक और पुष्करद्वौप) को सब दुनिया (प्राणणे ) नय गई (झुक गई, अर्थात् सब कोई उस के शरण में आ गये) ॥ उस ने अपने खड्ग के बल से तहाँ तक राज्य (अपने अधिकार में) ले लिया, जहाँ तक कि दो सौंगवाला सिकन्दर बादशाह ने किया था । सिकन्दर के शिर में सौंग का होना परम्परा से प्रसिद्ध है। कहावत है कि एक दिन बीमार पड जाने से सिकन्दर के हजाम ने बाल बनाने के लिये अपने पुत्र बब्बन हजाम को भेजा। बाल बनाने के अनन्तर सिकन्दर ने डाँट कर बब्बन से कहा कि खबर्दार मेरे शिर में सौंग का होना किसी से न कहना, नहीं तो शिर कटवा लूँगा। उस का कहे विना पेट फूलने लगा, तब मनुष्यों से न कह कर, एक बगीचे में, जो बडा पुराना कटहर का पैंड था, उस से कह, अपने पेट को हलका किया (जड कटहर किस से जा कर कहे ?)। निदान विना कहे उस का भी यहाँ तक पेट फूला कि कुछ दिनों में सूख गया। एक बढई ने उसे मोल ले कर, उस को दो सारंगी और एक सुन्दर तबला बनाया। कत्थकों ने उन सुन्दर सारंगियों को और तबले को मोल ले कर सिकन्दर के दर्बार में गाना सुनाने को गये। उन लोगों ने लाख उपाय किया परन्तु उन से कोई शब्द न निकले केवल एक सारंगौ सौंग सौंग दूसरौ किन किन कहे । इस पर तबले से आवाज निकले कि बब्बन हजाम । इस का भेद बादशाह को खुल गया। बब्बन को बुला कर एकान्त में पूछा कि तुम सच कहो मेरे शिर में सौंग का होना तुम ने किसी से कहा ? । अभय-दान पाने पर बब्बन ने कटहर से कहना कहा । अन्त में जान पड़ा कि उसी कटहर को ये सारंगियाँ और तबला है । (शेर शाह के) हाथ में सुलेमान को अँगूठी थी, तिसौ मूठौ से ( जिस में अँगूठी थी) जग को (जगत भर के प्राणियों को) जीवन दान दिया ॥ कहावत है कि जिस के हाथ में सुलेमान को अंगूठी हो, वह रात दिन लोगों को रुपया पैसा देता रहे, परन्तु उस को मूठौ खाली न हो । और वह भारी पृथ्वी-पति (बादशाह ) अत्यन्त गुरु था, अर्थात् भारी था, कि पृथ्वी को टेक कर (रोक कर ) सब सृष्टि को सँभार लिया, अर्थात् सृष्टि में जितने प्राणी थे सब का बोझा (पालन, श्राच्छादनादि का) अपने शिर पर उठा लिया ॥