२५.] सुधाकर-चन्द्रिका। ५४२ दोहा। =जब तक =तब। । कहत - - गुरू मोर मोरइ सिर देइ तुरंगहि ठाठ । भौतर करहि डोलावई बाहर नाँचइ काठ ॥ २५० ॥ जब लगि यावत् । मद् = मैं । श्रहा = था, अहद (अस्ति) का भूत- काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । चौन्हा = चौन्हदू (चिहयति ) से संज्ञा बनाई गई है। कोटि करोड । तर = अन्तर। पट = वस्त्र वा पट्ट = केवाडा = पर्दा । हुत = था। बिच = बौच = मध्य । दौन्हा = दिया हुआ। जउँ= यदि वा जब। तउ= तदा अउरु = अपर । कोई = कोऽपि । तन = तनु = पारीर । मन = मनः = मानस । जिउ जीव । जोबन = योवन =जवानौ। मोई = वही = स एव । हउँ= अहम् = कथयन् = कहते। धोख = धोखा = भ्रम। अंतराहौँ = अन्तरे हि = भौतर में । जो जब, वा यदि। भा = बभूव = हुआ। कहाँ = कुत्र । परछाहौँ परिच्छाया। मार = मारे = मारयेत् । गुरू = गुरु । जिवावा = जौवयेत् = जिलावे। को = को= कः = कौन मार = मारने । मरद =मरने । श्रावा = श्रावद (आयाति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक- वचन। सूरी= शूलो = फाँसी। मेलि = मेलयित्वा = मेल कर = डाल कर। हसति = हस्ती = हाथौ। पूरू = पूर= पूर = पूरयति = पूरा करता है। हउँ = मैं अहम् । नानउँ=जानामि जानता है। जान जानाति जानता है। गूरू = गुरु । चढा = उच्चलन = चढा हुा । सो = सः = वह। पेखा= पेख = प्रेक्षति = पेखता है, देखता है वा परीक्षा करता है। जगत = जगत् = संसार । जो =जो = यत् । नास्ति = नहीं है = नष्ट है। देखा = देख = देखद (पश्यति) = देखता है। अंध अंधा। मौन = मछलौ। जैसे। जल = पानी। मॅह = मध्ये = में । धावा = धाव = धावद (धावति) = दौडता है। जल = जड = मूर्ख। जौअन = जीवन = पानी =जल । पुनि = पुनः = फिर । दिमिटि = दृष्टि = नजर । श्रावा= श्राव = त्रावद् (आयाति) = पाता है। मोर = मेरा मम । मोर = मोरे = मेरे= मम । सिर = शिरः । देर = दत्त्वा = दे कर । तुरंगहि = तुरङ्गस्य = घोडे को। ठाठ = ठाट = संस्थान माज। भीतर अभ्यन्तर। करहि = कला को (कलायाः) कल को। डोलावई = डोलावद (दोलयति): डोलाता है = घुमाता है। बाहर = वाह्य । नाँचद् = नृत्यति = नाँचता है। काठ = लकडी, यहाँ काठ सौ शारीर ॥ = अन्ध जस= यथा = काष्ट
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