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२०६] सुधाकर-चन्द्रिका। दोहा। परगट गुपुत सकल महि पूरि रहा सब ठाउँ। जहँ देखउँ ओहि देखउँ दोसर नहिँ कहँ जाउँ ॥ २४६ ॥ - राजहि =राजा को। केकि = छेकयित्वा = केक कर = रोक कर। धरे धरह (धरति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, बहु-वचन । सब = सर्व । जोगौ = योगौ। दुख = दुःख। ऊपर = उपरि । महद् = महते = सहता है। बिनोगी = वियोगी = विरही। ना=न । जिउ= जीव । धडक = धडका= धडधडाहट । धरत हद् = धरद् (धरति) धरता है। कोई = कोऽपि। जनउँ =जाने = जानता हूँ। मरन = मरण । जिन = जीवन । कस = कथम् = कैसा। होई = भवति होता है। नाग-फाँम = नाग-पाश = सर्पाकार फंदा। उन्ह = उन्हों ने। मेली=मेल (मेलयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । गौश्रा = ग्रीवा = गला । हरख = हर्ष = खुशौ। बिसमउ = विस्मय = चिन्ता । एकउ = एकोऽपि = एक भी। जौत्रा = जीव । जर्दू = यः = जिन्हों ने । दोन्ह = अदात् = दिया । मो =सः = वह । लेउ = लातु = लेवे। निरामा = नैराश्येन = निराश से। बिसरदू = बिमरे (विस्मर्यंत) =भूले। जउँ लहि = जब तक । तन = तनु = शरीर । सांसा = श्वास । कर = हाथ । फिंगरी= किन्नरी = एक तरह को चिकारी जिसे पौरिया वा योगी हाथ में लिए बजाया करते हैं । तेंदु: तिम ने । तंत= तन्तु = तार । बजावा = बजावद वादयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन। नेह = स्नेह = प्रोति । गीत = गान । बैरागी = विरागी = योगी । गावा = गावद (गायति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन। भलैहि वरम् = अच्छा । पानि =ानीय = श्रान कर । गित्र = ग्रीवा = गला । मेली मेल (मेजयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । फाँसी = पाशी = फाँसी लगाने की रस्मौ। हिबई = हृदय में । मोच = शोच = चिन्ता । रोस = रोष = क्रोध । रिम = रिष्ट = शुभ । नासौ = नसद (नश्यति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक वचन । मई = मैं = अहम् । फाँद = पाश = = फंदा । श्रोही = उसी । मेला = मेलदू (मेलयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । जेहि = जिम । पेम = प्रेम। पंथ = पन्थाः = राह । हो = भूत्वा = हो कर । खेला = खेल (खेलति) का भूतकाल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन ॥ परगट प्रकट = जाहिर। गुपुतः गुप्त = छिपा। सकल = सब = समय। महि= पृथ्वी =भूमि । पूरि = पूर = पूर्ण । रहा = रहद् (रहति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, -