१२-१३] सुधाकर-चन्द्रिका। दूस प्रकार से अपने मत के प्राचार्य का वर्णन कर अब अपने समय के राजा का वर्णन ग्रन्थ-कार करता है। चउपाई। सेर साहि देहिलो सुलतानू। चारि-उ खंड तपइ जस भानू॥ ओही छाज राज अउ पाटू । सब राजइ भुइँ धरा लिलाटू ॥ जाति वर अउ खाँडइ सरा। अउ बुधिवंत सबइ गुन सर-नवाँई नवा खंड भई । सात-उ दौप दुनी सब नई ॥ तहँ लगि राज खरग बर लौन्हा । इसकंदर जुलकरन जो कौन्हा ॥ हाथ सुलेमाँ केरि अँगूठौ। जग कह जिअन दोन्ह तेहि मूठी ॥ अउ अति गरू पुहुमि-पति भारौ। टेकि पुहुमि सब सिसिटि सभारी॥ - दोहा। दोन्ह असौस मुहम्मद् करहु जुग हि जुग राज। पातिसाहि तुम्ह जगत के जग तुम्हार मुहताज ॥ १३ ॥ भानू = भानु = सूर्य। पाटू = पट्ट सिंहासन। लिलाटू = ललाट = मस्तक । खाँडद् खाँडे में = तरवार में । सूर = बहादुर । बुधिवंत = बुद्धिमान् । सूर-नवाँई = बहादुरी को झुकावट अर्थात् नौचा होना। दुनौ = दुनिया = प्राणो लोग। नई = झुक गई = नीचे पड गई । खरग = खड्ग। बर = बल । दूसकंदर = सिकन्दर । जुलकरन = दो सौंगवाला। सुलेमान = यहूदी एक बादशाह । पुहुमि-पति = पृथ्वीपति । पातिसाहि = बादशाह । मुहताज = भिखमंगा = भिक्षुक । दिल्ली का सुलतान (बादशाह ) शेर शाह (पृथ्वौ के ) चारो (खण्ड ) भाग में अर्थात् पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दकिवन ऐसा तपता है जैसे सूर्य ॥ उमौ को (शेर शाह को ) राज्य और सिंहासन सोहता है, (उस के आगे ) सब राजाओं ने पृथ्वी में अपने मस्तक को धरा अर्थात् रख दिया ( हार मान कर प्रणाम करने में शिर को झुका लिया ) ॥ वह बादशाह जाति में सूर अर्थात् सूरबंश का है (सूर एक अफगानों के जाति का नाम है। उसी जाति में शेर शाह उत्पन्न हुआ था) और तलवार में भी सूर अर्थात् बहादुर है। और बुद्धिमान और सब गुणों में पूरा है ॥ जम्बूद्वीप के नवो खण्डौं (भारतवर्ष, 11 3
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