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२४५] सुधाकर-चन्द्रिका। ५३१ । श्राकाश। थोडे । 1 नहि । जंबुक = जम्बुक साजि कद काजा 1 मारे ॥ तर्कयन्ति = ताकते हैं = देखते हैं। जहाँ = यत्र । तहाँ = तत्र । उपसवही = उपसर्पन्ति चले जाते हैं। निडर = निर्दर = निर्भय । असद = - एतादृशो हिः ऐसे हो। जौत्रा जीव = प्राणी। खरग खड्ग = तलवार । देखि कद दृष्ट्वा = देख कर । नावहिँ नमयन्ति = झुकाते हैं। गौत्रा = यौवा = गला । जाहिँ = यान्ति जाते हैं । जिउ जीव = प्राण। बधिः = हत्वा = बध कर। अउरहि = अपरस्य = दूसरे को। मरन मरण = मृत्यु । पंख पक्ष = पर। श्रम = एतादृश = ऐसा । कहाँ = क्व हि। चढहिँ उच्चलन्ति = चढते हैं। कोपि = मनुष्य = कोप कर क्रोध कर। गगन = उपराही = उपरि हि=ऊपर । थोर = स्तोकेन साज = सज्जन = तयारी । मरहिं= मरन्ति = मरते हैं। मो= मः, यहाँ = वे । नाहीं सियार । कह = को। जउँ= यदि जो। चढिहि = चढिए = उच्चलेत् । सिंघ = सिंह । = सज कर = तयारी कर। चढि = चढिए = उच्चलेत् । त= तर्हि = तो। शोभित हो। काया = काय = शरीर। जम = यथा = जैसे। पारा=पारद । छरहि

क्षरन्ति = छरते हैं। मारा

काज = कार्य = काम। किरिसुन =कृष्ण = कृषा-चन्द्र। कर-का। साजा = सज्जित। धरहि =धरन्ति = धरते हैं। रिसाद = रिम कर = रोष कर। गिद्ध= ध्र = मांस खाने-वाला प्रसिद्ध पक्षौ । जहिँ = येषाम् = जिन को। दिसिटि = दृष्टि = नजर। पर = उपरि। बिनु = विना। छर=क्षर = नाश। किछु = किञ्चित् = कुछ। बसा = वशमेति= बमाता है = चलता है ॥ (गन्धर्व-सेन को) प्रणाम कर जो मन्त्री था वह बोलता है कि, ऐसा जो चोर वह निश्चय कर कोई सिद्ध है । सिद्ध बेडर रात में घूमा करते हैं, जहाँ देखते हैं, अर्थात् इच्छा करते हैं, वहीं चले जाते हैं। सिद्ध निडर होते हैं और ऐसे जीव हैं कि खड्ग देख कर (उस के सामने अपना) गला झुका देते हैं। निश्चय कर सिद्ध जहाँ चाहते हैं वहाँ जीव का नाश कर चले जाते हैं, दूसरे को कहाँ ऐसा मरना और पक्ष है (जो अाकाश पर जाय)। जो सिद्ध क्रोध कर आकाश पर चढते हैं, वे थोडी (सेना कौ) तयारी से नहीं मरते। हे राजा यदि स्यार पर चढाई करना हो तो सिंह (के मारने ) को तयारी कर चढिए तो उचित हो । मिद्ध को शरीर अमर है जैसे कि पारा, (ए दोनों) छर जाते हैं, अर्थात् टुकडे टुकडे हो जाते हैं, पर (किसी के ) मारे नहीं मरते ॥