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५३० पदुमावति । २8 । मंत्री-खंड। [२१५ अथ मंत्री-खंड ॥ २४ ॥ चउपाई। राँधि जो मंत्री बोलइ सोई। अइस जो चोर सिद्ध पइ कोई ॥ सिद्ध निसंक रइनि पइ भवहौं। ताकहिँ जहाँ तहाँ उपसवहीं । सिद्ध निडर पइ अइसइ जौथा। खरग देखि कइ नावहिँ गौत्रा। सिद्ध जाहिँ पइ जिउ बधि जहाँ। अउरहि मरन पंख अस कहाँ ॥ चढहिँ जो कोपि गगन उपराहौं। थोरइ साज मरहिं सो नाही। जंबुक कहँ जउँ चढिअहि राजा। सिंघ साजि कइ चढि त छाजा ॥ सिद्ध अमर काया जस पारा। छरहिँ मरहिँ पइ जाहिँ न मारा ॥ दोहा। रिसाइ। छरहिँ काज किरिसुन कर साजा राजा धहिँ सिव गिद्ध जेहिँ दिसिटि गगन पर बिनु छर किछु न बसाइ ॥ २४५ ॥ श्राराध्य =ाराधना कर = पूज कर = प्रणाम कर। जोजो = यः । मंत्री = मन्त्रौ। बोलदू = वदति = बोलता है। सोई = स एव = वहौ। अम = एतादृश ऐमा । चोर = चौर। पद = अपि = निश्चय से। कोई = कोऽपि । निसंक = निःशङ्क = वेडर । रइनि= रजनी- रात । भवहौँ = भ्रमन्ति =भ्रमण करते है। ताकहिं = -