५२८ पदुमावति । २३ । राजा-गठ-का-खंड। [२४३ कहहिँ बेद पढ पंडित बेदी। जोगि भवर जस मालति-भेदी ॥ जइसइ चोर सैंधि सिर मेलहिँ। तसि प्रइ दोउ जौउ पर खेलहिँ ॥ पंथ न चलहिँ बेद जस लिखे चढे सरग सूरी चढि सिखे ॥ चोरहि होइ सूरौ पर मोखू। देइ जो सूरौ तेहि नहिँ दोखू ॥ चोर पुकारि बेधि घर मूंसा। खोलहिँ राज-भंडार-मजूसा॥ दोहा। जइस भंडारहि मूंसहिँ चढहिँ रइनि देइ सँधि । तइस चहिअ पुनि उन्ह कहँ मारहु खरी बेधि ॥ २४४॥ इति राजा-गढ-ॐका-खंड ॥ २३ ॥ पाम= - बहु-वचन। राजदू = राजा (गन्धर्व-सेन) ने । सुना = अष्टणोत् । जोगि = योगी। गढ = गाढ दुर्ग = किला। चढे = चढदू (उचलति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बह-वचन । पूँछौ = पूछद् (पृच्छति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बहु-वचन। पार्श्व = निकट। पंडित = पण्डित । पढे = पढदू (पठति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बहु-वचन । जोगौ = योगी। संधि = सन्धि । दैद =दे कर (दत्त्वा)। श्रावहिँ = श्रावद् (आयाति) का बहु-वचन। कहहु = कहिए (कथयथ ) । मो=मः = वह । सबद = शब्द = बात । जिन्ह = जिन से । पावहिँ = पावद (प्राप्नोति ) का बहु वचन। कहहि =कहदू (कथयति) का पढ = पढहिँ = पढते हैं ( पठन्ति )। बेदी= वेदी जानने-वाले विज्ञ । भवर = भ्रमर । जस = यथा = जैसे । मालति = मालती = एक प्रसिद्ध सुगन्धित पुष्य । भेदी = भेद (मर्म ) के जानने-वाले जासूसी। जदूसद् =जैसे = यथा। चोर = चौर। मैंधि = सैंध दे कर। सिर = शिर । मेलहि = मेल (मेलयति) का बहु-वचन । तसि = तथा = तैसे-हौ। प्रदू = ए = एते । दोउ = दोनों = दो। जीउ = जीव । पर = उपरि। खेलहिं = खेल (खेलति) का बहु-वचन । पंथ = पन्थाः = राह । चलहिँ = चल (चलति) का बहु-वचन । लिखे लिखद् (लिखति ) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बहु-वचन । सरग = स्वर्ग ऊपर। सूरी= शूली। चढि = चढना। सिखे = सौखे हैं = शिक्षित हुए हैं। होद = होता है (भवति)। मोख = मोक्ष । देह = देता है (दत्ते) । जो = यः । तहि = तिसे ।
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