५२० पदुमावती । २३ । राजा-गा-छका-खंड । [२४० गहि पिंगला सुखुमना नारौ। सुन्न समाधि लागि गइ तारी॥ बूंद-हि समुंद होइ जस मेरा। गा हेराइ तस मिलइ न हेरा॥ रंग-हि पानि मिला जस होई। आपुहि खोइ रहा होइ सोई ॥ सुअइ अाइ देखा भा नासू । नइन रकत भरि आउ आँसू ॥ सदा पिरौतम गाढ करेई। वह न भूल भूला जिउ देई ॥ दोहा। अत्र । तदूस '=तथा। मूरि सजौोनि आनि कइ अउ मुख मेला नौर। गरुर पाँख जस भारइ अँबिरित बरसा कौर ॥ २४ ॥ दूहाँ = यहाँ तैसा तप=तपः= तपस्या । झूरा-झूर हो गया = शशुष्क हो गया । भा= भया (बभूव) = हुा । जरि= जल कर (श्राज्वल्य)। बिरह = विरह = वियोग। छार = क्षार = राख । कूरा= कूट = ढेर । मउन = मौन चुप । गण्उ = गया = (अगात् ) । बिमोही = विमोह = मूर्छित । बिनु = विना। जिउ जौव। दोन्हसि = दिया (अदात्)। श्रोही = उसे । गहि = गह कर (ग्टहीत्वा) पकड कर । पिंगला = पिङ्गला= नासिका का दहिना खर। सुखुमना = सुषुम्णा नासिका के दोनों स्वर । नारी= नाडौ। सुन्न = शून्य = ब्रह्माण्ड । समाधि = ध्यान में मग्न हो जाना, संसार से चित्तवृत्ति को हटा लेना (चित्तवृत्तिनिरोधः समाधिः, ऐसा योगशास्त्र में लिखा है)। लागि गदू = लग गई । तारी=ताली = तालिका = कुञ्जी। बंद-हि = बूंद से (विन्दुतः) । समुंद = समुद्र। होदू = होता है (भवति)। जस = यथा जैसे । मेरा = मेल =संग । गा=गया (अगात् )। हेराइ = लोप ( हेड अन्वेषणे से )। तस = तथा = तैसे। मिल = मिलता है (मिलति)। हेरा = हेरने से = ढूंढने से (हेड अन्वेषणे से)। रंग-हि = रङ्ग में। पानि = पानी (पानीय)। मिला = मिलित । होई = हो = होता है (भवति)। आपु-हि = अपने को (श्रात्मनः)। खोदू =खो= नाश। रहा रहदू (तिष्ठति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । हो = हो कर (भूत्वा)। सोई = = सा एव =वी। सुप्रदू =क ने। भाई ( एत्य )। देखा = देखद् (पश्यति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काब, पुंलिङ्ग का एक-वचन भा = भया (बभूव) = हुश्रा। नासू आँख। रकत = रक्त = खून = रुधिर । भरि = भर = पूर्ण । श्राउ = पाया (पायात्) । आँसू = बाँस (अश्रु )। - =श्रा कर नाम। नदून =नयन =
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