२३६ -२. सुधाकर-चन्द्रिका। ५१८ फिर मैं भी तुझ में ऐसौ-ही अनुरक्त हूँ, (अनुरक्त होने-ही से आधी भेंट के लिये तेरे पास चिट्ठी भेजी है क्योंकि कहावत है कि) पत्त्री प्रियतम को श्राधी मुलाकात है। यदि दूँ प्रौति-निर्वाह कर सकता है तो भ्रमर यह नहीं देखता कि, केतकी में (कितने) काँटे हैं। श्रोठौँ से दीप (ज्योति) को पकड कर, फतिंगा हो जाओ, अर्थात् दोप-ज्योति-सम मैं जो है उस के लिये फतिंगा हो जात्रो, गोताखोर हो कर समुद्र में घुस कर (मोती-रूप मुझे ) लेो। जैसे दौए को बत्ती लाल रंग की होती है, वैसे-ही खाती के लिये सौप हो कर (मेरे में) आँखों को लगायो । कहावत है कि यद्यपि मोप समुद्र में रहती है तथापि खाती-हौ का पानी पीती है, उमौ पानी के पौने से उम में मुक्ता पैदा होती है। चातक हो कर प्यास के दुःख खाती के पानी को श्राशा से “पौव, पौव” पुकार, अर्थात् मेरे लिये प्यासा हो कर दिन रात मेरे नाम को पुकारा कर। कहावत है कि चातक खाती-ही का पानी पौता है, दूस के ऊपर तुलसी-सतसई में अनेक दोहे लिखे हैं । (१४१ ३ दोहे को टौका देखो)। जोडी बिकुडने पर जैसी सारस को दशा होती है वैसा ही मेरे लिये तुम मारस हो । सारस के जोडे में बहुत-ही प्रौति होती है, एक के वियोग से दूसरा प्राण दे देता है, इसी पर वाल्मीकि रामायण का पहला लोक बनाया गया है। रात्रि में (पति-वियोग के कारण ) पानी में चकई और चकोरी को जो दशा होती है वैसा-हो तुम भी हो। कहावत है कि चकवे और चकोर के जोडे में रात्रिसमय वियोग हो जाता है। चकोर हो कर चन्द्र पर दृष्टि लगायो; (कहावत है कि रात को चकोर चन्द्र-हो को देखा करता है) अर्थात् मुझे चन्द्र समझ कर तुम चकोर हो जात्रो; और रवि जो है उस में कमल हो जाओ, अर्थात् मुझे रवि जान कर उस के लिये तुम कमल हो जात्रो ॥ हम भी तुम से ऐसौ-हौ (प्रौति लगाई हुई) हैं, (सो) दूँ भी, यदि कर सकता है, तो प्रीति को निबाह । अर्जुन हो कर राहु (मत्स्याकार लक्ष्य) को बेध कर, (और सब को) जीत कर, द्रौपदी से विवाह कर, अर्थात् मुझ से विवाह कर। राहु के लिये १०४ दोहे को टौका देखो ॥ २३८ ॥ चउपाई। राजा इहाँ तइस तप भूरा। भा जरि बिरह छार कर कूरा ॥ मउन लगाए गएउ बिमोही। भा बिनु जिउ जिउ दोन्हसि ओहो ।
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