पदुमावती । २३ । राजा-गठ-छका-खंड । [२३८ एक फूल तुम्हारी मनकामना पूरी करेगा। कुश्रर उस के पास जा कर उस की सेवा में लगा। बहुत दिनों पर वह प्रसन्न हो कर कहा कि क्या चाहते हो । कुर ने कहा कि योगि-राज गन्धावती को चाहता है। इस पर उस ने कहा कि यह मेरी मामी से बाहर है तुम मेरे गुरु के पास जाओ। कुवर उस के गुरु के पास जा कर उस की सेवा करने लगा और उस के प्रसाद से शुक हो कर गन्धावती से मिला । गन्धावती तौल में से बढ गई दूस पर उस के पिता को उस पर पर-पुरुष संयोग का संशय हुश्रा। बहुत खोज करने पर उस ने चाहा कि सुग्गे को मार डालें पर गन्धावती ने उसे उडा दिया। वह कुर मनुष्य वेष से वहौं रहने लगा अन्त में स्वयंवर के समय गन्धावती ने उसी के गले जय-माल डाल कर उसी से विवाह किया। संभव है कि दुसौ कहानी को बढा कर किसी ने गन्धावती नाम की कोई पुस्तक लिखी हो ॥ मधु-मालती- मोहनपुर में मधुकर नाम का राजा रहता था। एक दिन राजा अहेर करने गया वहाँ एक हरिण के पीछे दौडा । बहुत दूर जाने पर हरिण लोप हो गया। राजा एक वृक्ष की घनी छांह के नीचे कपडे को बिछा कर श्राराम करने लगा। बहुत दिनों के विछुडे दो सुग्गे दैवात् उस वृक्ष पर आए। दोनों से भेंट होने पर दोनों प्रसन्न हो कर आपस में बात चीत करने लगे। एक ने कहा कि मित्र तुम से विछुड कर एक वृक्ष पर बैठा था तहाँ अचानक एक व्याधे ने मुझे फंसा लिया। उस ने प्रम-नगर को हाट में रूप-राजा के यहाँ मुझे बैंच दिया। राजा ने अपनी कन्या मालती से कहा कि इस सुग्गे को पालो । उस ने मुझे बडे प्यार से पाला। वह ऐसौ सुन्दरौ है कि मैं वर्णन नहीं कर सकता। एक दिन वह सरोवर में स्नान करने गई। घर को सूना पा कर मेरे पिंजरे पर बिलैया झपटौ। भाग्य-वश पिंजरे से भाग कर उउ पाया। मधुकर मालती का नाम सुन प्रेम से विकल हो गया। मधुकर ने उस सुग्गे से कहा कि नीचे उतर कर मेरे पास पात्रो और मालती कैसे मिलेगी दूस का उपाय बतायो। राजा के बहुत कहने पर सुग्गे ने मालती के पास जा कर राजा का संदेसा सुनाया। मधुकर का नाम सुन कर मालती भी उस के मिलने की चाह से बहुत व्याकुल हुई । मालती की दशा पर सुग्गा फिर लौटा और मालती की फुलवारी में रहने लगा। धाई ने मालती की दशा देख कर सब वृत्तान्त पूछी । मालती ने धाई के कहने से प्रेभ बनिजारे के साथ सुग्गे को भेज कर मधुकर को बुला कर उस के साथ विवाह किया। इस की सविस्तर कथा इन्द्रावती के मधुकरखण्ड में नूर महम्मद ने लिखी है। नागरी प्रचारिणौ ग्रन्थमाला में इन्द्रावती छापी गई है। -
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