२३८] सुधाकर-चन्द्रिका। ५१५ मिरगावती किसी राजा की लडकी थी राज-कुर ने किसी स्थान में इसे देख कर दूम को धाई से अपना विरह कहा है। यह धाई के कहने पर उड कर श्राकाश को चली गई है। चलती बेरा अपनी धाई से कही है- धाद न उगुन श्राहद तोरा । कहियो जोहार कुर मो मोरा ॥ अउ अस कहहु कुअर सो बाता । मोर जीउ आहे तोहि राता ॥ संत-हि पाए सुख-हि श्रमोला । ता कर मरम न जान भोला ॥ जहि कारन हउँ जाउँ उडाई । कहहु कुर मो श्रावद धाई ॥ कंचन-नगर हमारो ठाऊँ। रूप-मुरार पिता कर नाऊँ ॥ निदान राज-कुर ने बडे कष्ट से कञ्चन-पुर में जा कर इस से विवाह किया है। राज-कुर को पहली रानी रुकिाणी थी। पद्मावती और मिरगावती दोनों को एक चाल है। एक पुस्तक की छाया दूसरी पुस्तक है। मुझे मिरगावती की भाषा पद्मावती की भाषा से नई जान पड़ती है। संभव है कि इस खण्डित पुस्तक में जो सन् ८०८ दिया है वह हिजरी सन् न हो। कुतबन जहाँ रहता रहा हो वहाँ के नवाब के राज्यकाल से सन् लिखा हो जो कि पद्मावती के मन् से बहुत पीछे हो । कुतबन ने एक जगह पर लिखा है कि- माह हुसेन श्राहि बड राजा । छच सिंहासन उन को छाजा ॥ मुझे इतिहास में कोई हुसेन शाह नाम का प्रसिद्ध बादशाह नहीं मिलता । हुसेन शाह शरको जौन-पुर के सुलतान सन् ८६८ हिजरी ( १ ४५८ ईसवी) में हुए थे। संभव है कि इन्हीं को कुतबन शाह हुसेन कहा हो। इतिहास के जानने- वालों को दूस का पूरा पता लगाना चाहिए । कुर-गन्धावती-स्त्रियों में परम्परा से कहानी सुनी जाती है कि एक राजा को पाँच लडके थे। सब से छोटा लडका एक दिन चुप चाप अपनी भौजाई के पास बैठा था बोलाने से भी नहीं बोलता था। इस पर भौजाई ने ताना मार कर कहा कि मानों श्राप गन्धावती से जो तौल में एक फूल के बराबर है विवाह कर उसी से बोलिएगा। इस पर उस कुर ने निश्चय कर लिया कि गन्धावती-ही से विवाह करूंगा। इस के लिये योग धारण कर जङ्गल जङ्गल घूमता फिरता था। एक दिन एक वन में एक योगी से भेंट हुई। यह वहीं ठहर कर उस की सेवा करने लगा। योगी ने प्रसन्न हो कर उस से कहा कि वर मांग। कुर गन्धावती से विवाह हो जाना बर माँगा। योगी ने कहा कि दूसरे वन में मेरा माथी रहता है उस के पास जाओ वह
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