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५२४ पदुमावती । २३ । राजा-गठ-का-खंड । [२३८ विक्रम-चम्पावतौ जी को सिंहासनवत्तौसी में पांचवौं पुतली लीलावती को कथा में चम्पावती के स्थान में सिंहावती नाम लिखा है, जिम के लिये विक्रम बहुत कष्ट भोगा है। यदि सिंहावतो यह नाम शुद्ध है तो मूल में 'चंपावति' के स्थान में 'सिंहावति' होना चाहिए । वत्सराज-मगधावती-अवन्ती का राजा वत्सराज मगध देश के लावानक पुर के वन में अपनी पत्नी वासवदत्ता के साथ विहार करने आया था। एक दिन शिकार खेलने के लिये राजा दूर चला गया। अवसर पा कर यौगन्धरायण ने वासवदत्ता को छिपा दिया। राजा के पाने पर कहा कि लावानक में वासवदत्ता आग लगने से जल गई श्राप मगधराज प्रद्योत की पुत्री पद्मावती से विवाह कर मागधी पद्मावती को रानी बनाइए। अन्त में वत्सराज ने मागधी से विवाह किया फिर पौछे से वासवदत्ता भी मिली। यह कथा वृहत्कथामञ्जरी के हतौयलम्बकान्तर्गत मातवी आख्यायिका में मिलती है और बृहत्कथा सरित्सागर के तौयलम्बक के दूसरे तरङ्ग में भी है। संभव है कि दूसौ की छाया ले कर किसी ने मगधावती नाम की कथा लिखी हो ॥ राज-कुर-मिरिगावती-सेख बुर्हान का चेला कुतबन ने सन् ८ ० ८ में मिरिगावती नाम कौ पुस्तक बनाई है। उस में राज-कुर और मिरिगावती को सविस्तर कथा लिखी है। यह मलिक महम्मद की पद्मावती से ३८ वर्ष पहले की है। बाबू हरिश्चन्द्र के पुस्तकालय में एक खण्डित पुस्तक मुझे मिली है। दूस में मुझे राज-कुमार का नाम नहीं मिला है संभव है कि “राज-कुर" यही नाम हो क्योंकि पुस्तक में एक स्थान में लिखा है कि "तुला रास गनि नाउँ जो राखा । राज-कुर सब पंडित भाखा ॥” चित्रा के तीसरे चरण में जन्म होने से राज कुबर को तुला राशि होती है। एक दिन यह शिकार खेलते खेलते मान-सरोवर के तौर पर पहुँचा । इसे देखते-हौ एक हरिणौ उतर कर सरोवर के भीतर लोप हो गई । राज-कुर दसे ढूंढने के लिये पानी के भीतर गया है। कुतबन ने लिखा है- कुर सँकेत कुरंगिन डरौ । मानसरोदक भौतर परौ । तेहि महँ सो मिरगौ विपि जाए । फिरि नहिँ निकमो गई हराए ॥ दोहरा। तुरी बाँधि तरवर सो कापर धरा उतार । बेग पैठ मरवर मह ढूँढ लाग निहार ॥ -