२३० सुधाकर-चन्द्रिका। - भप्रऊ=भया जोगी= योगौ। कहि = कस्य = किस । माह = मध्ये = में । अकेला = एकसः = एकाको। विकरम = विक्रम = उज्जयिनी का प्रसिद्ध राजा। धंसा = पैठा [ कंसु अवतंसने (स्वादि) से] । पेम = प्रेम । कदू = के । बारा= बार =दार। चंपावति चम्पावती एक पाताल को राज-कन्या। कह = के। गउ = गया ( अगात्)। पतारा '= पाताल। सुदद बच्छ = सुदेव वत्स = वत्मदेव । मगधावति = मगधावती=मागधी = मगधराज की कन्या । लागी = लिये। कँकन = कङ्कण = कडा । पूरि= श्रापूर्य = पहन कर । होगा = हो गया । बदरागौ-वैरागी = विरागी। राज-कुर =राज-कुमार = राज-पुत्व । कंचन-पुर कञ्चन-पुर। मिरगावति =मृगावती= एक राज-कन्या। (बभूव)। साध = साधा (अमाधयत् )। कुर = कुमार =राज-पुत्त्र । गंधावति = गन्धावती= एक राज-कन्या । जोगू = योग । मधु = मधुकर = एक राजा । मालति मालती = एक राज-कन्या । कीन्ह = किया (अकरोत् ) । बिश्रोगू = वियोग । पेमावति = प्रेमावती = मोहनी। सर = शर = फूस की चिता । सुर = देव महादेव । साधा = असाधयत् । उखा = ऊषा = वाणासुर की कन्या । अनिरुध = अनिरुद्ध = कृष्ण का पौत्र = प्रद्युम्न का पुत्र । बर = वर = विवाहयोग्य पुरुष । बाँधा = बाँधा गया । हउँ = मैं । पदुमावती = पद्मावती। मात = सप्त । सरग खर्ग। पर = उपरि। बास = बास = रहने का स्थान । हाथ = हस्त । चढउँ= चढती है। ताहि के = तिस के। प्रथम = पहले । श्रपुनाम = अपना नाश ॥ अब तो सूर्य (रत्न-सेन) यदि आकाश पर चढ कर भावे और राहु होवे तो शशि (पद्मावती) को पावे अर्थात् शशि के साथ का सुखानुभव करे। (मेरे लिये) ऐसे-हौ बहुत से लोग जीव पर खेल गए, अर्थात् उद्योग कर मर गए, दूँ अकेला योगी किम गिनती में है। प्रेम के द्वार में विक्रम धंसा, (और) चम्पावती के लिये पाताल में चला गया। वत्सदेव मगधावती के लिये (हार्थों में) कङ्कण पहन कर वैरागी हो गया। राज-कुर मृगावती के लिये कञ्चन-पुर गया और योगी हो गया। कुर ने गन्धावती के लिये योग साधा । मधुकर ने मालती को वियोग, अर्थात् व्याकुल, किया, अर्थात् विरहिण किया। सुर ने प्रेमावती के लिये चिता लगाई, अनिरुद्ध ऊषा के लिये बांधा गया ॥ मैं पद्मावती रानौ हूँ सात खर्ग (धरहरे) के ऊपर मेरा वास है, जो पहले अपने को खोवे (नाश करे) उस के हाथ मैं पाती हूँ (चढनौ ॥ 65
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६३१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।