पदुमावति । २३ । राजा-गड-का-खंड । [२३६ - २३७ (भङ्गी के लिये ०८ दोहे को टौका देखो)। जिस को (देह में) औट कर प्रेम एक नहीं हुआ है, अर्थात् मिल नहीं गया है, जिस के हृदय में से डर नहीं गया है । जिस को मलयाचल का वास नहीं हुआ, अर्थात् मलय-चन्दन की प्राप्ति नहीं हुई, जो सूर्य हो कर, आकाश पर नहीं चढा ॥ जो प्रियतम के लिये (उपस्थित) है, उस को क्या रहने का क्षण कहा जाता है, अर्थात् वह क्या एक क्षण भी ठहरता है; उम को क्या पानी क्या भाग, जहाँ (प्रियतम का नाम) सुने वहीं धंस कर (प्रियतम-प्राप्ति का सुख ) ले ॥ २३६ ॥ चउपाई। पुनि धनि कनक पानि मसि माँगी। उतर लिखत भौंजी तनु आँगौ ॥ तेहि कंचन कह चहि सोहागा। जउँ निरमल नग होइ सो लागा ॥ हउँ जो गइउँ मढ मंडप भोरी। तहवाँ तुइँ न गाँठि गहि जोरौ ॥ गा बिसँभारि देखि कइ नइना। सखिन्ह लाज का बोलउँ बइना ॥ खेलहि मिसु मइँ चंदन घाला। मकु जागसि तो देउँ जइ-माला ॥ तबहुँ न जागा गा तूं सोई। जागइँ भैटि न सोअइँ होई ॥ अब तउ ससि होइ चढउँ अकासा। जो जिउ देइ सो आवइ पासा ॥ तब लगि भुगुति न लैइ सका राोन सित्र एक साथ । कउन भरोसइँ अब कहउँ जौउ पराए हाथ ॥२३७॥ पुनि = पुनः = फिर। धनि धन्या (पद्मावती)। कनक = सुवर्ण । पानि = पानी पानीय । ममि = मषी = स्याही। मांगी माँग (याचते) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन। उतर = उत्तर जवाब। लिखत = लिखते ( लिखन्)। भौंजी भौं जद (अभ्यङ्ग्यते ) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन। तनु = शरीर = देह। आँगौ = अगिया (अङ्गिनी)= चोलिया = चोली। तेहि = तिम। कंचन = काञ्चन = सुवर्ण । कह = को। चहित्र = चाहिए। सोहागा = सोहागा = (भाङ्ग)। ज= यदि जो। निरमल = निर्मल = स्वच्छ = साफ। नग = रत्न का खण्ड, जो अँगूठी इत्यादि में
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