२३६] सुधाकर-चन्द्रिका। जम-यथा जैसे। पर जो। =रचा
स एव
कमि कहा (कथयत्)। सुत्रा - शुक। मो मउँ= मुझ से । सुनु = सुन (टणु )। बाता = वार्ता = बात। चहउँ = चाहूं (इच्छानि)। तो = तर्हि । श्राजु = अाज = अद्य। मिल = मिलूं (मिलानि ) । राता=रक= अनुरक्त। अपि पर। सो =मः = वह । मरमु मरम = मर्म = भेद। जानदू = जानता है (जानाति )। भोरा = भुलना = बौरहा -गार = वातुल । प्रौति प्रेम। जो= यः मरि क = मर कर (मृत्वा) । जोरा जोरद (जोटयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक वचन । हउँ = अहम् = मैं । जानति = जानती (ज्ञाता)। हउँ = हूँ (अस्मि)। अब-हूँ = ददामोमपि = अधुनापि - अब भी। काँचा '= कच्चा (कधः कच बन्धने से )। ना = न = नहीं। रंग = रङ्ग = वर्ण। थिरु = स्थिर = ठहराऊ। रांचा गया, वा रचा=रचर (रचयति) का प्रथम पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । होद = होता है (भवति) भर्वर =भ्रमर = भौंरा । रंगू = रङ्ग = वर्ण । दीपक = दीप दौया । पतंगू = पतङ्ग = फतिंगा। करा = कला । भिंगि = भृङ्गो = बिलनी = एक कौट विशेष। होई = होद (भवति)। अबहि अभी। जिअ = जीवता है (जीवति )। मरि = मर कर (मृत्वा)। सोई = वहौ। पेम = प्रेम । अउटि=ावरों औट कर। प्रक = एक । भाऊ = भया (बभूव) = हुआ। हिअ = हृदय। माँह = मध्ये = में। डर = दर = भय । गणऊ = गया (अगात्)। मलद = मलय। गिरि पर्वत। बामा = वाम । रबि = रवि = सूर्य । होइ = हो कर (भूत्वा)। चढेउ (उच्चलित हुा)। अकाशा = आकाश = वर्ग ॥ का= किम् = क्या । कहित्र = कहिए (कथ्यते)। रहन = रहना । हद = है (अस्ति)। पौतम = प्रियतम । लागि = लिये। जहाँ = यत्र। सुनदू = सुने (टणुयात् )। तह = तहाँ । लेदू = लेता है (लाति)। धंसि धूम कर (प्रध्वंस्य)। कहा = किम् = क्या । पानि = पानीय = पानी। का=किम् = क्या । श्रागि अग्नि ( पद्मावती ने) कहा कि, हे शुक मुझ से बात सुन, जैसा (वह मेरे में ) अनुरक है ( इस बात के सुनने से ) चाहँ तो आज ही मिलें । पर वह गवाँर (प्रौति का) मर्म नहीं जानता, जो मर कर प्रीति को जोडता है वहौ (प्रौति को) जानता है। मैं जानती हूँ, अभी वह कच्चा है, जिम में स्थिर प्रौति-वर्ण नहीं रचा गया। जिस में (अभौं) भौर का रङ्ग नहीं आया, जो कि (अभौं ) दौए का फतिंगा न हुआ। जिम में अभी भृङ्गौ की कला न हुई, जो कि वह अभी मर कर नहीं जीत्रा है। - - = चढा खन =क्षा। प्राग ॥ -