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४९८ पदुमावति । २३ । राजा-गढ का-खंड । [२३० 1 वाणी। 2 नयन= 1 पौर = पीडा = व्यथा। का करि= किस कौ। चौता चिन्ता फिक्र। प्रीतम = प्रियतम। निठुर= निष्ठुर = कठोर । होदू = (भवति ) होता है। श्रम = एतादृश = ऐसा। नौता नौत । कहऊँ = कह (कथयानि)। बिरह = विरह वियोग । भाखा= भाषा = जरि जल कर (प्रज्वल्य)। राखा=राख =रक्षा = भस्म । श्रागि अग्नि। तन =तनु = शरीर। जर =जड । बर = वट = बर का पैंड । जरद = (ज्वलति) जलता है। नदून = आँख। नौर पानी। सायर सागर =जलस्थान। सब= सर्व। भरद = (भरति) भरता है। पातौ =पत्री चिट्ठी। लिखौ = लिख (लिखति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । सर्वरि = (संस्मृत्य) स्मरण कर। नावाँ नाव नाम । श्राखर = अक्षर। भ=भए (बभूवुः)। स्थावाँ = श्याम = काले। जरहिँ जरदूका बहु-वचन । कूत्रा = कुश्रद् (स्पृश्यति ) का प्रथम पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । तब= तदा। दुख = दुःख । देखि = ( दृष्ट्वा) देख कर। चला= चलदू (चलति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग भूत-काल का एक-वचन । लेदू = ले कर (श्रालाय)। सूत्रा = एक सुग्गा ॥ अब दूदानीम् अधुना। सुठि = सुष्टु अच्छी तरह से। मरउँ = मरता हूँ (मरामि)। छि = छौ = खाली (रिक्त)। गद = गई (गात् )। पेम = प्रेम । पिबारे = प्रिय। हाथ = हस्त। भैटि = भेंट = समागम। होति = होती (भवेत् )। रोड रो कर ( रुदित्वा)। सुनावत सुनावता (श्रावयेत् )। जीउ= जीव । जात = जाता (यात् )। जउँ= यदि। साथ = सार्ध ॥ उस विष-वाण (को कथा ) कहाँ तक लिख, (उस से विद्ध होने से आँखों से ) जो रक्त चुत्रा, उस से दुनिया भौंग गई । कवि कहता है कि जान पडता है कि वह (रत्न-सेन ) खून का पसौना गार रहा है, (सच है) सुखी दुःख का भेद नहीं जानता। जिसे पीडा नहौँ उसे किस को चिन्ता, प्रियतम निष्ठुर होता है, ऐसौ नौति है। मैं (अपनी) विरह की वाणो किस से कहूँ, जिस से कहता हूँ वही जल कर राख हो जाता है। विरहाग्नि से वर के जड ऐसौ देह जलती है, आँखों के पानी से सब जलस्थल भर रहे हैं। (हे पद्मावती) तेरे नाम को स्मरण कर (मैं ने दूस) पत्नी को लिखौ है, रक्त के लिखे अक्षर (विरहाग्नि से) काले हो गए। कवि कहता है कि अक्षर जल्ल रहे हैं (उन्हें जल जाने के डर से ) कोई कूता नहीं है, तब (अन्त में रत्न-सेन का ) दुःख देख कर एक (हीरामणि) ( उस पत्नी को) ले कर चला ॥ - 1