२२५] सुधाकर-चन्द्रिका। ४८ . मैं भी मारा जाऊँगा। कोई योगी ऐसा नहीं कहता, जो तेरे योग्य बात हो उसे कह । वह (गन्धर्व-सेन) बडा राजा है (उस का) इन्द्र के ऐसा सिंहासन है, कौन ऐसा है जो जमीन पर पड़ा वर्ग को चाटना चाहे। यदि यह बात वहाँ (गन्धर्व-सेन के यहाँ) चलाई जाय (तो) अभौं सिंहस्थ के हाथो कूटेंगे। और वज्र के गोले छूटेंगे, (जिस से यह ) भुक्ति- वासना भूल जायगी, तुम (मर कर) ढेले हो जाओगे। जहाँ फैलाने से नजर भी नहीं पहुँचती तहाँ अरे भिखारी तूं हाथ फैलाता है। अरे गोरख-नाथ के चेले, आगे देख कर पा रख, उस जगह न ढूंढ जहाँ कि माथ टूट जाय ॥ वह ( पद्मावती) रानी जिम के योग्य है उसी को (यहाँ के) राज्य और सिंहासन है, (वह) सुन्दरी राजा के घर जायगी; योगी को बंदर काट खायगा ॥ एक माकन्दिका पुरी में मौनौ योगी भिक्षा माँगा करता था। दैवात् एक दिन एक बनिए के घर भिक्षा मांगने गया। उस की सुन्दरी कन्या को देख मोहित हो मौनव्रत को त्याग उस के विरह से व्याकुल हो गया। योगी की यह दशा देख वह बनिया योगी के पौके पीछे दौडा। और ज्यों ही वह अपनी मठ के पास पहुँचा त्यों ही वह योगी के पास पहुँच कर प्रार्थना की कि महाराज मेरी कन्या को देख कर श्राप दुःखौ क्यों हुए। योगी ने कन्या को लेने के लिये उस से धूर्तता से कहा कि यह कन्या बडी अभागी है। विवाह होते ही तुमारा सर्वनाश करेगी। सो यदि अपना भला चाहो तो इसे रात को संदूक में बंद कर गङ्गा जी में बहा दो। बहाते समय संदूक के ऊपर एक बरता हुआ दौप रख देना। योगी के कहने बनिए ने वैमा हौ किया। इधर योगी ने अपने चेलों से कहा कि जाओ गङ्गा जी में एक संदूक जिस के ऊपर चिराग जल रहा है बह रही है उसे ज्याँ की त्यों उठा लाओ। दूम बीच में एक राजकुमार शिकार खेलते खेलते गङ्गा के किनारे पहुँचा और संदूक को वहते देख अपने नौकरों से पकडवा मँगाया। खोलने पर उस मैं अति सुन्दरी स्त्री को देख, मोहित हो उसे अपनी रानी बनाया और उस संदूक में एक बनैले भयङ्कर बंदर को जिसे कि बन से फंसा लाया था बंद कर गङ्गा जी में बहा दिया। योगी के चेलों ने उस संदूक को पकड कर योगी के पास लाए। योगी संदूक देख कर बहुत खुश हुआ और कोठरी के भीतर ले जा कर चेलों से कहा कि बाहर से कोठरी बंद कर दो, मैं योग सिद्ध करूँगा, तुम लोग चुप चाप नीचे जा कर मोत्रो। निदान संदूक खोलने पर बंदर ने योगी को काट खाया। योगी कोठरी खोलने के 62
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६०७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।