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४८८ पदुमावती । २३ । राजा-गट केका-खंड। [ २२५ दोहा। सुनि= श्रुत्वा - वह रानौ जेहि जोग हइ तेही राज अरु पाट । सुंदरि जाइ राज-घर जोगिहि बाँदर काट ॥ २२५ ॥ सुन कर। बसौठ = वसिष्ठ = दूत । उपनौ = उत्पन्न हुई। रौसा = रिस =रोष क्रोध। जउ = जब = यव, एक प्रसिद्ध अन्न। पौमत = पीसते (पिषु संचूर्णने से )। घुन = घुण = काठ वा अन्न खानेवाला एक प्रसिद्ध कौडा । जाइहि =जायगा (यास्यति)। पौमा पोस । जोगी - योगी। अदस = एतादृश = ऐसा। कहद = (कथयति) कहता है। कोई कोऽपि । मो =स:=वह। कह कह (कथय)। बात -वार्ता। जोग= योग्य । तोहि = तुझे। होई = होय (भवेत् ) । बड = बडा (वर)। राज = राजा । दूदर = दून्द्र। पाटा = पट्टा = सिंहासन। धरती धरित्री भूमि। पर+ पडे (पतन्)। सरग = वर्ग। को = कः = कौन । चाटा = चाट = चाटता है (चट भेदने से, चटयति)। जउँ= यदि= जो। होद = होवे (भवेत्)। तह = तत्र = तहाँ । चलौ = चलाई (प्रचार) । कूटिहि = कूटेंगे (कुटिष्यन्ति, छुट छेदने, तुदादि)। अबहिँ इदानौं हि = अभौं । हसति हस्तौ = हाथो। सिंघलो = सिंहली= सिंहल के। तह = तत्र = तहाँ। बजर = वज्र। गोटा- गोट = गोला। बिसरद = बिमरे = भूल जाय (विस्मर्यंत)। भुगति=भुक्ति = भोजन । होउ हो (भवथ)। रोटा = रोडा = लोष्ट = ढेला । जहँ लगि = जहाँ तक = यावत् । दिसिटि = दृष्टि । जादू = जाय (यायात्) । पसारी प्रसार = फैलाय । पमारमि= फैलाता है (प्रसारयमि)। हाथ = हस्त । भिखारी = भिक्षुक । आगू= आगे- अये। देखि -देख कर ( दृष्ट्वा)। पाउँ= पाद = पैर । धरु = धर (धर)। नाथा = नाथ = हे गोरखनाथो योगी। हेरु = हेर (हेड्रि अन्वेषणे से )। टूट = टूटे (बुट्येत )। जह= जहाँ = यत्र । माथा-मस्तक ॥ रानी राजी = राजा की पत्नी, यहाँ गन्धर्वसेन को कन्या। हद् = है (अस्ति) । = पट्ट = सिंहासन । सुंदरि= सुन्दरी (पद्मावती)। जादू = जायगी (यास्यति)। राज-घर =राज-ग्रह । जोगिहि = योगी को। बाँदर = बंदर (वानर)। काट = काटे ( कर्त्तयेत् ) ॥ (रत्न-सेन की बात) सुन कर दूत के मन में रोष उत्पन्न हुआ, (कहने लगा कि खबर्दार ऐमा न कह, नहीं तो ) जौ के पौमते घुन भी पौमा जायगा, अर्थात् तेरे संग पाट