४८६ पदुमावती । २३ । राजा-गह-छका-खंड । [२२४ चउपाई। अनु जो भौखि हउँ आउँ लेई । कस न लेउँ जउँ राजा देई ॥ पदुमावति राजा कइ बारौ। हउँ जोगौ तेहि लागि भिखारौ॥ खप्पर लिए बार भा माँगउँ। भुगुति देइ लैइ मारग लागउँ॥ सोई भुगुति परापति पूजा। कहाँ जाउँ अस बार न दूजा ॥ अब धर इहाँ जौउ ओहि ठाऊँ। भसम होउँ पइ तजउँ न नाऊँ॥ जस बिनु प्रान पिंड हइ ठूछा। धरम लागि कहिअउ जउँ पूँछा ॥ तुम्ह बसौठ राजा का ओरा। साखि होहु यह भौखि निहोरा ॥ दोहा। जोगी बार त्राउ सो जेहि भिखिया कइ आस । जउँ निरास डिढ आसन कित गउँनइ केहु पास ॥ २२४॥ अनु = अनुज्ञा =आज्ञा। जो यः। भौखि = भिक्षा। हउँ= अहम् = हम। श्राप = आया (या प्रापणे से श्रा-उपमर्ग)। लेई = लेने (ला दाने से )। कस = कथम् = कयों। लेउ = लेऊँ। जउँ= यदि। देई = दे (दद्यात् ) । पदुमावति = पद्मावती। कई = को। बारी= बालिका कन्या । जोगी= योगी। तेहि लागि = तिस के लिये। भिखारी भिचुक । खप्पर = खर्पर = खप्पड । बार = द्वार । भा = हुआ। माँगउँ= माँगता हूँ (याचे)। भुगुति= भुक्ति। देद = दे (दद्यात् ) । लेदू ले कर (श्रालाय) । मारग = मार्ग = राह । लागउँ= लगउँ= लगें (लगेयम् )। मोई = स एव = वहौ। परापति प्राप्ति । कहाँ = कुत्र । जाउँ = जावें (यानि)। अम = ऐसा = एतादृश । दूजा = द्वितीय = दूसरा। अब = इदानीम् । धर = धड, यहाँ, शरीर। इहाँ = अत्र = यहाँ। जीउ = जीव । श्रोहि = तत्र -तहाँ = वहाँ। ठाऊँ = ठाव = स्थान । राख । हो हो। (भवानि)। पद् = अपि। तजउँ= तग (त्यजानि) = छोडूं । नाऊँ =नाम। जस = यथा = जैसे । बिनु = विना । प्रान = प्राण । पिंड = पिण्ड = प्र.रीर = देह । हदू = है (अस्ति)। छूछा = रिक्त = खालौ= शून्य। धरम = धर्म। धरम लागि = धर्म के लिये। कहिउ = कहना । जउँ= यदि= जो। पूछा = पूंछ (पृच्छेत् )। बसोठ = वसिष्ठ दूत। कद् = को। भोर = तरफ = अग्र। साखि = सातौ = गवाह । होउ = हजिए (भवत)। निहोरा= निहोरदू (निरोधयति) का उत्तम-पुरुष, भूत-काल का एक-वचन ॥ भसम=भस्म
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।