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२२२] सुधाकर-चन्द्रिका। ४८३ -

यथा

सत्य= सच । - मनावद् का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल, एक-वचन । जब = यदा । संकर = शङ्कर महादेव । मिधि = सिद्धि। दोन्ह = दिया का बहु-वचन । को = कौन । टेका टेके रोके (रोधयेत् )। परी पर (पतति) का प्रथम-पुरुष, स्त्रीखिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन । हुङ्कार = हौरा= कोलाहल । जोगिन्ह = जोगी (योगी) का बहु-वचन । गढ गाढ = दुर्ग= किला। छका = रोका = शङ्कित किया = छैकर (शङ्कते ) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भृत-काल का एक-वचन । सबदू = सर्वा हि = सभी। पदुमिनी = पद्मिनी । देखहि = देखद् (पश्यति) का बहु वचन । चढी = चढी हुई (उच्चलन्ती)। सिंघल - सिंहल । घेरि = घेरा (अग्रहीत् )। कीन्ह = किया का बहु-वचन । उठि = उत्थाय = उठ कर। मढी = मठ = मठौ =देव-मन्दिर । जस जैसे। खर-फरा = चर-फरा आतुर जल्दबाज । तहि बिधि = तिसी तरह = उसी तरह । अधि: सन्धि। चाह = इच्छा। दोन्ही =देव (दत्ते) का प्रथम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग, भूत-काल, बहु-वचन । गुपुत गुप्त । जो= जो = यः । रहदू = रहे (तिष्ठेत् )। सो 'सः = वह । साँचा परगट = प्रगट = प्रकट। होदू = होय (भवेत् )। जौउ = जीव । बाँचा = बचे = उर्वर्यात् = अवशिष्टत। पउरि = पुरद्वारी= पौरी प्रतोली। लाग = लगा = लग्न हुअा। कवारा केवारा= कपाट। राजा सउँ= राजा से । भई = (भवति) होदू का प्रथम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन । पुकारा= पुकार पुत्कार । जोगौ = योगी। श्रादू श्रा कर। कि = छैक कर (श्राशय) = शङ्कित कर = रोक कर । मेले हैं ( मिल मङ्गमे से ) = एकट्ठाँ हो कर। जनउँ =जानउँ =जाने। कउनु = कौन = क्व नु । देस =देश। कह = को। खेले = खेले हैं = खेलयन्ति वा खेलन्ति ॥ भाउ =भया (बभूव)। रजाप्रसु= राजाज्ञा = राजादेश। देखा = देखो (दृशि प्रेक्षणे से)। को= कः = कौन । श्रम = एतादृश -ऐसा। भिखारी= भिक्षुक ! ढीठ = धृष्ट = ढोठा । जादू = जा कर (यात्वा)। बरजि = वर्जन। तिन्ह = तिन्हैं। श्राव श्राश्रो (आयाहि)। जन = आदमी। दुइ = दो ( द्वौ )। जाहि = जायँ (याताम् )। बमोठ= दूत ॥ राजा ने (महादेव से) मिद्धि-गटिका को पाया, गणेश को मनाया और मिद्धि (प्राप्त) हुई। जब महादेव ने सिद्धि दो (तो उस को) कौन रोके, योगिनों ने गढ को बैंक लिया यह कोलाहल हुआ। सब पद्मिनी (अटारिओं पर) चढी देख रही हैं, (योगिओं ने ) देवमन्दिर से उठ कर सिंहज (गढ) को घेर लिया। जिस तरह जल्द-बात्र चोर मति करता है अर्थात् श्रातर चोर की जैसी बुद्धि होती है उसी

एत्य

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