४८२ पदुमावती । २३ । राजा-गठ-छका-खंड । [२२२ अथ राजा-गढ-उँका-खंड ॥ २३ ॥ RS232 चउपाई। सिद्धि-गोटिका राजइ पावा। अउ भइ सिद्धि गनेस मनावा ॥ जब संकर सिधि दोन्ह को टेका। परी इल जोगिन्ह गढ बँका ॥ सबइ पदुमिनी देखहिँ चढौ। सिंघल घेरि कौन्रु उठि मढौ ॥ जस खर-फरा चोर मति कौन्हौ। तेहि बिघि सँधि चाह गढ दोन्ही ॥ गुपुत जो चोर रहइ सो साँचा। परगट होइ जीउ नहिँ बाँचा ॥ पउरि पउरि गढ लाग कैवारा। अउ राजा सउँ भई पुकारा ॥ जोगी आइ बैंकि गढ मेले। न जनउँ कउनु देस कहँ खेले ॥ दोहा। भाउ रजासु देखहु को अस भिखारी ढौठ। जाइ बरजि तिन्ह आवहु जन दुइ जाहिँ बसौठ ॥ २२२ ॥ सिद्धि = अष्टसिद्धि । गोटिका= गुटिका= गोली। राजदू = राजा ने राज्ञा । == पाया ( प्राप्नोत् ) । अउ = अपि च = और । भद् = (भवति) होई = होता है का प्रथम-पुरुष, स्त्री लिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन । गनेस = गणेश । मनावा = (मानयति ) पावा
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