४७६ पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-खंड | [२१८ - २१८ मूसइ पेई॥ जिस का जीव (विरहाग्नि से) जलता है वह उसी तरह से रोता है, (और) उस के रक्त और मांस गलते हैं, अर्थात् गल गल कर गिरते हैं, सूत सूत (अङ्ग के अवयव ) आँसू से भर (उस के ) रोएँ रोएँ सब रोते हैं । २१८ ॥ चउपाई। रोअत बूडि उठा संसारू। महादेओ तब भाउ मयारू॥ कहेसि न रोउ बहुत तइँ रोत्रा। अब ईसुर भा दारिद-खोबा ॥ जो दुख सहइ होइ सुख ओ का। दुख बिनु सुख न जाइ सिउ-लोका ॥ अब तूं सिद्ध भया सुधि पाई। दरपन कया छूटि गइ काई ॥ कहउँ बात अब हो उपदेसौ। लागि पंथ भूले परदेसी॥ जउँ लहि चोर सँधि नहिँ देई । राजा केर न चढइ त जाइ बार वह खूदौ । परइ त संधि सौस सउँ मूंदौ ॥ दोहा। कहउँ सो तोहि सिंघल गढ हइ खंड सात चढाउ। फिरइ न कोई जित जिउ सरग पंथ देइ पाउ ॥ २१६ ॥ रोश्रत = रुदन् =रोते । बूडि = बूड डूब (ब्रुड संवरणे से)। ( उत्तिष्ठते ) का पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, भूत-काल का एक-वचन। संसारू = संसार = जगत् । महादेशी = महादेव। तब = तदा । भण्उ = बभूव = भया = हुआ । मयारू = मायालय = दयालु । कहेसि = कहा (अकथयत्)। रोउ = रोश्रो (रोदौः)। बहुत = बहुतर = अधिक । तद् = तैं । रोत्रा =रोत्र (रोदिति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल का एक-वचन । अब = दूदानीम् । ईसुर = ईश्वर । भा = बभूव = इश्रा । दारिद = दरिद्र। खोत्रा खोने-वाला। जो = यः । दुख = दुःख । सहदू = सहते = सहता है। होदू = (भवति) होता है। श्री का= उस को। जादू =जाता है (याति)। सिउ-लोका शिव-लोक = कैलास । दूँ = त्वम् । भया = (बभूव ) हुआ। सुधि = द्धि = पवित्रता । पाई = पावद (प्राप्नोति) का प्रथम-पुरुष, भृत-काल, स्त्रीलिङ्ग का दरपन = दर्पण = श्रारमौ=ऐना । कया = काय = शरीर। गद् = गई (गात्)। काई = कायौ = मैला। कहउँ कहता हूँ (कथयामि )। बात = वार्ता। हो = हे= अहो। उठा उठद 1 एक-वचन ।
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