२१७] सुधाकर-चन्द्रिका। ४७३ 1 - - का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल, एक-वचन । कुसिटौ कुष्टी- कोढौ। कर = का । भेमू = वेष = सूरत । गिरिजा-पति = पार्वती-पति। सत = सत्य = निश्चय। श्राहि = अस्ति = है। महेसू-महेश = महादेव । चौन्हदू = परिचयति = चौन्हता है। सोडू =स एव = वहौ। तहि = तिसे । खोजा= खोज (अन्विष्यति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । जस = यथा = जैसे। बिकरम = विक्रम = अवन्ती का प्रसिद्ध राजा । अउ = और = अपि च । भोजा = भोज =धारा नगरी का प्रसिद्ध राजा। कद = कि वा। जिउ= जीव । तंत = तन्त्र = जिस ग्रन्थ में मारण, मोहन इत्यादि की विधि लिखी रहती है। मंत = मन्त्र । सउँ= से। हेरा= हेरदू (हेड्रते) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल, एक-वचन । गण्ड= गया (अगात्)। हेराय = खो। मेरा = मेल। बिनु = विना। पंथ = पन्थाः=राह। पाइ= प्राप्यते मिलता है। भूल = भ्रमति = भूलता है। मेट = मिटाता है। जोगी = योगी। तब = तदा । जब = यदा । गोरख प्रसिद्ध अवधूत गोरक्षनाथ । भेंट = समागम = मुलाकात ॥ महादेव की भाषा सुन कर, राजा ने मन में लखा कि यह कोई सिद्धपुरुष है। (क्योंकि) सिद्ध को देह पर मक्खी नहीं बैठती, सिद्ध आँखों पर पलक नहीं लगाते ( एक टक विना पलक भाँजे देखा करते हैं)। सिद्ध के संग छाया नहीं होती, अर्थात् सिद्ध के देह की छाया नहीं देख पडती। सिद्ध को भूख और माया नहीं होती। में भगवान् ने सिद्धि की अर्थात् सिद्धि दी, तो (वह पुरुष चाहे) प्रगट वा गुप्त रहे (उसे) कौन चौन्हता है अर्थात् कोई नहौँ चौन्हता। (राजा मन में विचार करता है कि) बैल पर चढे कोढी का वेष किए निश्चय पार्वती-पति महादेव है। इन्हें वही चौन्हता है जो दून की खोज में रहता है। जैसे विक्रम और राजा भोज । वा (जिस ने) जीव से तन्त्र और मन्त्र को हेरा है (वह इन्हें पाता है)। जो उस (पुरुष) से मेल हुश्रा तो (मेल होते-हौ) वह हेराय गया, अर्थात् ईश्वर से मेल होते-ही वह पुरुष तन्मय हो कर लुप्त हो जाता है ॥ गुरु के विना राह नहीं मिलती, जो (राह को) मिटा देता है वही भूलता है। जब गोरखनाथ (ऐसे गुरु ) से भेंट हो तब योगी सिद्ध होता है। राजा विक्रम भर्तृहरि के बड़े भाई थे। इनकी वीरता और सिद्धि बैतालपचीसी और सिंहासनवत्तीसी में प्रसिद्ध है। राजा भोज बडे संस्कृतानुरागी थे। योग इत्यादि में बडे निपुण थे। भोजवृत्ति, राजमार्तण्ड इत्यादि अनेक ग्रन्थ दून के बनाए यदि जगत् 60
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