पदुमावति । १ । असतुति-खंड । चउपाई। अलख अरूप अबरन सो करता। वह सब सउँ सब ओहि सउँ बरता॥ परगट गुपुत सो सरब बिपी। धरमौ चौन्ह चौन्ह नहिं पापौ ॥ ना ओहि पूत न पिता न माता। ना ओहि कुटुंब न कोइ सँग नाता॥ जना न काहु न कोइ अोहि जना। जहँ लगि सब ता कर सिरजना ॥ वेइ सब कीन्ह जहाँ लगि कोई। वह न कीन्ह काहू कर होई ॥ हुत पहिलइ अउ अब हइ सोई। पुनि सो रहइ रहइ नहिं कोई ॥ अउरु जो होइ सो बाउर अंधा। दिन दुइ चारि मरइ कइ धंधा ॥ दोहा। जो वेइ चहा सो कोन्हसि करइ जो चाहइ कीन्ह । बरजन-हार न कोई सबहि चाहि जिउ दोन्ह ॥७॥ - अलख = अलच्या अबरन अवर्ण= विना रङ्ग का, वा अवर्ण्य = वर्णन के योग्य नहीं। बरता = बटा हुआ है। बिआपी = व्यापौ। सिरजना = रचना किया हुआ। हुत = था) बाउर = बौरहा। कद = कर के । धंधा = कार्य । चाहि = चाहना कर = इच्छा से । वह जो कर्त्ता परब्रह्म ईश्वर है सो अलख, अरूप और अवरन (विना रङ्ग का, वा अवर्ण्य) है। वह सब से, और सब कोई उस से, बटे हुये हैं (रस्सौ की तरह) ॥ वह कहौं प्रगट रूप से, कहौं गुप्त रौति से, सर्वत्र व्याप्त है। परन्तु जो धर्मों हैं वे लोग तो इस ईश्वर को पहचानते हैं, और पापी नहीं पहचानते ॥ न उस को पुत्र, न पिता, न माता है। न उस को कुटुम्ब है, और न किसी के संग उस का नाता (सम्बन्ध ) है॥ वह किसी को नहौं जना (उत्पन्न किया), और न उस को कोई उत्पन्न किया। परन्तु जहाँ तक सब है, वह सब उसी का रचा हुआ है ॥ जहाँ तक जो कुछ है, सब उसी का किया हुआ है, परन्त वह किसी का किया नहीं है ॥ पहले भी वह था, और अब भी सोई ईश्वर है। फिर (भागे ) भी वहौ रहता है, और उसे छोड कोई नहीं रहता ॥ और जो होता है ( संमार में ) मो बौरहा और अंधा है। दो चार दिन धंधा (कार्य) कर मर जाता है ।। जो उस ने चाहा सो किया, और जो करने चाहता है सो करता है। उस को कोई बर्जने-वाला नहीं है, सब को अपनी इच्छा जीव दिया है॥७॥ =
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