४०२ पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-खंड । [२१६ - २१७ .. मो यदि लेने को श्रद्धा है तो दूस तोमरी (इत्या) को भी माथे पर लेो। बिध पौ लेने के दोष से महादेव ने चन्द्रमा और गङ्गा को कन्धे, अर्थात् माथे पर चढा लिया है जिस में शरीर ठण्डी रहे ; ए दोनों अन्तरङ्ग समय में भी पार्वती की कौडा को देखा करते हैं। दूस लिये पार्वती दून दोनों को हत्या-ही समझती है। बहुतों का मत है कि जैसे महादेव सर्प, नर-कपाल, श्रादि धारण किए हैं उसी तरह दोनों कंधे पर हत्या को भी लिए हैं; ग्रन्धकार भी पौने लिख पाए हैं कि इतिश्रा काँधे ॥ २१६ ॥ - चउपाई। सुनि कइ महादेओ कइ भाखा। सिद्ध पुरुख राजइ मन लाखा ॥ सिद्धहि अंग न बइठइ माखौ। सिद्ध पलक नहिँ लावहिँ आँखो॥ सिद्धहि संग होइ नहिँ छाया। सिद्ध होइ नहि भूख न माया ॥ जउँ जग सिद्धि गोसाई कौन्हौ। परगट गुपुत रहइ को चौन्ही ॥ बइल चढा कुसिटौ कर भेख । गिरिजा-पति सत आहि महेस्तू ॥ चौन्ह सोइ रहइ तेहि खोजा। जस बिकरम अउ राजा भोजा ॥ कइ जिउ तंत मंत सउँ हेरा। गाउ हेराय जो वह भा मेरा ॥ बिनु गुरु भाषा दोहा। पंथ न पाइन भूलइ सोइ जो मेट। जोगी सिद्ध होइ तब जब गोरख सउँ भेंट ॥२१७॥ सुनि कडू = श्रुत्वा = सुन कर। महादेश्रो = महादेव । कई = को। भाखा वचन । पुरुख- पुरुष मनुष्य । राजदू = राजा ने। मन = मनसि = मन में। लाखा लक्षित किया। अंग = अङ्ग =देह । बदठ = (उपविशति) वैठती है। माखौ मची = मक्षिका । पलक = पक्ष्म । लावहिं - लगाते हैं = लग्नयन्ति । आँखी= आँख अक्षि। होदू = ( भवति) = होती है। भूख = बुभुक्षा । माया = मोह। जउँ = यदि =ो। जग = जगत् । सिद्धि = अणिमादि अष्टसिद्धि। गोसाई = गोस्वामी = भगवान्। कोही किया का स्त्रीलिङ्ग, बहु-वचन । परगट = प्रकट। गुपुत गुप्त विपा। रहर = रहता है। चौन्हौ = चौन्हा का स्त्रीलिङ्ग। बदल = बैल = बलोवर्द। चढा = चढदू (उचलति ) =लखा । SE
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५७८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।