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२१४] सुधाकर-चन्द्रिका। जैसा = पठवडू दऊँ = देखें = क्या जानें। बीच = अन्तर । पेमहि = प्रेम को। पूजा = पूजद (पूजयति) का पुंलिङ्ग-प्रथम-पुरुष का एक-वचन । तन = तनु = शरीर। मारग = मार्ग =राह । दूजा दूसरा द्वितीय । भदू भई (बभूव)। सु-रूप सुन्दर रूप = रूपवती। जानहुँ = जानों = जाने। अपकरा = अपारा। बिहसि = बिहस कर (विहस्य ) । कुऔर - कुमार =राज-कुमार। आँचर = अञ्चल = वस्त्र का किनारा वस्त्र का टाँका। धरा= धरद (धरति) का भूत-काल । सुनहु = सुनद (श्टणोति) का विध्यर्थ में पुंलिङ्ग- मध्यम-पुरुष का बहु-वचन । मो सउँ मुझ से। बाता = बात =वार्ता । जस यथा। रंग: = रङ्ग = वर्ण। अउरहि = औरों में= अपरासु। राता रक्त ललित अनुरक । बिधि = विधि = ब्रह्मा । रूप = सुन्दरता = खूबसूरती = प्राकृति। दोन्ह हद = दिया है। तो का= तुम को। उठा = उठद् (उत्तिष्ठते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग-प्रथम- पुरुष का एक-वचन । सबद शब्द = वाणी। जादू = जा कर (प्रयाय)। सिउ-लोका शिव-लोक = कैलास, यहाँ इन्द्र-लोक । तब = तदा। हउँ =अहम् = हौँ = मैं , यहाँ मुझे। तो कह= तुझ को = तेरे लिये। इँदर = इन्द्र = देवताओं का राजा। पठाई (प्रेषयति) का भूत-काल। गदू = गई ( अगात् )। पदुमिनि पद्मिनी = पद्मावती। तुई = त्वं = आने । श्राकरि = अप्सरा । पाई = पावद् (प्राप्नोति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग-प्रथम- पुरुष का एक-वचन । अब = इदानीम् अधुना । तजु= त्यज = छोड। जरन = जलना = जरण। मरन मरना। तप=तपः = तपस्या। जोगू = योग। मो सउँ= मुझ से। मानु= मानो =मानद् (मन्यते ) का विध्यर्थ में पुंलिङ्ग-मध्यम-पुरुष का एक-वचन जरम =जन्म । जरम भरि जन्म भर । भोगू = भोग = विलास ॥ हउँ = हौँ = मैं । कबिलास = कैलास । कदू = की। सरि= सदृश = बराबरौ। पूज - पूजदू (पूर्यते ) = पूरा होता। तजि =तज कर (सन्त्यज्य ) = छोड कर । सवरि- सुमिर कर (संस्मृत्य) = ख्याल कर । मरसि =1 मरता है। कउनु = को नु = लब्धि फायदा । हो = हदू = है (अस्ति) ॥ पार्वती के मन में इच्छा उत्पन्न हुई कि राज-कुमार (रत्न-सेन) का सत्य-भाव तो देखू । देखें कि इस (सत्य-भाव) मैं अन्तर है या ( निरन्तर हो कर) प्रेम को पूज लिया है, वा प्रेम से भर गया है, अर्थात् वस्तुतः दूस का मन पद्मावती के प्रेम में मग्न हो गया है अथवा झूठा ऊपर का श्राडग्वर मात्र है। तन मन एक हो गए हैं अथवा तनु का दूसरा मार्ग और मन का दूसरा मार्ग है, अर्थात् भीतर बाहर एक-हौ -

मरण

= कौन। लाभ=