४५८ पदुमावति । २१ । राजा-रतनसेन-सती-खंड। [२१० अब-हि कि घडी चिनगि पइ छूटिहि। जरिहि पहाड पहन सब फूटिहि ॥ देओता सबइ भसम होइ जाहौँ। छार समेटेड पाउब नाहीं॥ धरती सरग होइ सब हइ होई प्रहि राख बिधाता॥ ताता। दोहा। मुहमद चिनगि परेम कइ सुनि महि गगन डेराइ । धनि बिरहिन अउ धनि हिबा जहँ अस अगिनि समाइ ॥ २१० ॥ . सकल=सब। कम- ककनू = ककनुस (UAE )। यह अरबौ या यूनानी शब्द है; एक पक्षी का नाम है; इसे फारसी में बातशजन (iii) भी कहते हैं । पंखि = पक्षौ । जइस = जैसे यथा। सर= शर= सरपत = पार की चिता। माजा = साज = माजदू (सज्जते)। तम = तैसे = तथा। साजि = सज्ज कर = तयार कर। जरदू = जरना। चह = चाहा = चहह (इच्छति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग प्रथम-पुरुष का एक-वचन । देशाता = देवता। श्राइ = श्रा कर (एत्य )। तुलाने = पहुँचे। द= देखें। कैसा कथम् । हो प्र= होडू = होता है (भवति)। देओ देव। असथाने = स्थान में। बिरह = विरह वियोग। अगिनि = अग्नि = श्राग। बजरागि= वज्राग्नि । SEST= देखने योग्य नहीं = तीन । जरद् = (ज्वलति) जरता है। सूर शूर = बहादुर ( रत्न-सेन)। बुझाए = बुझाने से। बूझा बुझती है। जरत = उठद = उठे (उत्तिष्ठेत् ) । बजागी= वनानि । जरिहि = जरेंगे = जरद् (ज्वलति ) का भविष्यकाल, प्रथम-पुरुष का बहु-वचन । लागी = लगने से । श्रब-हि अभी। घडी = घटौदण्ड यहाँ समय। चिनगि चित्कण = स्फुलिङ्ग = श्राग को कनौ । पद् = अवश्य = अपि । छुटिहि = छूटर ( कुड्यते) का भविष्य काल = कूटेगौ । जरिहि = जरेगा। पहाड = प्रहार = पर्वत । पहन = पाहन = पाषाण = पत्थल । फूटिहि = फुटदू (स्फुटति ) का भविष्यकाल = फूटेगा। सबद = सभी। भसम = भस्म । जाहौँ = जायँगे । छार = क्षार = राख । समेटे = समेटने से ( वर्त्तयति से )। पाउब = पावद (प्राप्नोति) का भविष्यकाल = पावेंगे। धरती = धरिनी =जमौन । सरग = वर्ग। हो - हाँगे। ताता = तप्त = गर्म । राख = र क = रक्षेत् । बिधाता -विधाता =हा ॥ जरते।
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५६४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।