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४५० पदुमावति | २१ । राजा-रतन-सेन-सती-खंड । [२०६ चउपाई। रोअइ रतन माल जनु चूरा। जहँ हो, ठाढ होइ तहँ कूरा ॥ कहाँ बसंत सो कोकिल बइना। कहाँ कुसुम अलि बेधी नइना ॥ कहाँ सो मूरति परौ जो डौठौ। काढि लौन्रु जिउ हिअइ पईठौ ॥ कहाँ सो दरस परस जेहि लाहा। जउँ सो बसंत करौलहि काहा ॥ पात बिछोउ रूख जो फूला। सो महुअा रोअइ अस भूला ॥ टपकहिँ महुअ आँसु तस परहौं। होइ महुअा बसंत जउँ झरही ॥ मोर बसंत सो पदुमिनि वारौ। जेहि बिनु भाउ बसंत उजारौ ॥ दोहा। पावा नउल बसंत पुनि बहु आरति बहु चोपु । अइस न जाना अंत होइ पात झरहिँ होइ कोपु ॥ २०६ ॥ नयन रोश्रदू =रोता है (रोदिति)। रतन = रत्न-सेन । माल-माला= मुक्ता-माला। चूरा= चूर्ण । ठाढ = खडा = स्थित । कूरा = कूट -ढेरी। बसंत = वसन्त । कोकिल = एक प्रसिद्ध काले वर्ण का पक्षी जो वसन्त-ऋतु मैं बोलता है। इसे पिक भी कहते हैं; भाषा में कोयल नाम से प्रसिद्ध है। बदना=बैन = वचन । कुसुम पुष्य। अलि भ्रमर । बेधी = बेध = (विध्यति) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । नदना = आँख । मूरति = मूर्ति। परी= पर (पतति) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । डौठी = दृष्टि। काढि = काढ = कर्षण। लौन्ह = लेद (लाति) का भूत-काल। जिउ = जीव । हिअ = हृदय में। पईठी पैठि = पैठ कर (प्रविश्य )। दरस = दर्शन । परम = स्पर्श। जेहि = जिस का। लाहा = लाभ। जउँ= यदि =जौं। करौलहि करील को, करौल एक प्रकार का वृक्ष है जो कि वृन्दावन में बहुत प्रसिद्ध है, वसन्त में सब वृक्षों में नए पत्ते उत्पन्न होते हैं परन्तु करौल में नए पत्ते नहीं होते, यह वृक्ष प्रायः बेपत्ते का होता है। पात = पत्ता= पत्र । बिछोउ -विच्छुरणः वियोग । रूख = वृक्ष । फूला = फूलद् ( फुल्लति) का भूत-काल में पुंलिङ्ग का एक-वचन । महा= मधूक = एक प्रसिद्ध वृक्ष । श्रम = ऐसा एतादृश। भूला भूला था।