४४८ पदुमावति । २१ । राजा-रतनसेन-सती-खंड । [२०५ % 3D =कुतः अग्नि। लागे = लगद्, वा लागद् (लगति) का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का बहु-वचन । बन = वन = जङ्गल । दागि=दग्ध्वा = जला कर। सिंघ सिंह। दागे दगधद (दहति) का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का बहु-वचन । जरहि = जरदू (ज्वलति) का बहु-वचन । मिरिग = मृग = हरिण । बन-खड = वन-खण्ड वनविभाग। ज्वाला = ज्वलन = तेज वा अग्नि। बइठ =बैठते हैं (उपविशन्ति )। छाला = छाल = मृगचेल। कित क्याँ। लिखे = लिखे गए। सोत्रा खपित = सोत्रा है। मकु = मैं कहा = क्या जानें। आँकन्ह = आँक का बहु-वचन । करत= करते हैं (कुर्वन्ति)। बिछोत्रा = विच्छ रित वियोगौ। जदूम = जैसे - यथा। दुखत = दुष्यन्त, एक प्रसिद्ध राजा। साकूतला शकुन्तला = मेनका की पुत्री, कण्व से जो पालो गई। माधउनलहि माधवानल को; माधवानल एक प्रसिद्ध गुणो, जो मङ्गीतशास्त्र में बहुत निपुण था । कामकंदला एक वेश्या। नल = एक प्रसिद्ध राजा। दमावति = दमयन्ती विदर्भदेश के राजा भीमसेन को पुत्रौ । नयनाँ नयन का बह-वचन = अाँखें । मूदि = मूंद कर (श्रामुव्य) बंद कर । छपी = छपद् (ौक्षिपञ् प्रक्षेपणे से क्षिपते) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । पदुमावति = पद्मावती ॥ श्राद = श्रा कर = एत्य । वसंता = वसन्त-चतु। छपि रहा = फूल का बहु-वचन । भेस = वेष = सूरत। पावउँ = पावद् (प्राप्नोति ) का सम्भावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । भवर = भ्रमर = भौंरा । कउनु = को नु = कौन । उपदेस = उपदेश = शिक्षा ॥ जैसे जल के वियोग से मछली दुखिया हो और उसे पानी से निकाल कर भाग में डालें ( उसी प्रकार राजा रत्नसेन को दशा हुई); (हृदय में) चन्दन के (लिखे हुए) अक्षर के दाग पड़ गए वे अक्षर बुझते नहीं प्रज्वलित हो गए। जानौँ (वे अचर) भाग के बाण हो हो कर ( रन-सेन के हृदय में) लगे हैं; (वे अक्षर ) मब वन को दाग कर वन में सिंह को दागे हैं (कवि को उत्प्रेक्षा है कि वन के वृक्षों में स्थान स्थान पर जो चिन्ह हैं उन्हें चिन्ह न समझो, किन्तु वे उन्हीं अक्षरों के दागे हुए चिन्ह हैं और सिंह के अङ्ग में जो स्थान स्थान पर काले चिन्ह हैं वे भी उन्हीं अक्षरों के दाग है)। उन्हौँ (अक्षरों) को ज्वाला से वनविभाग में (कभी कभौं) हरिण जल जाते हैं, अर्थात् उन्हीं अक्षरों से दावाग्नि उत्पन्न होती है; और जो तिम (राजा के श्रासन) मृग-छाला पर बैठ जाते हैं वे भी जरने लगते हैं। छिप रहा। फूलन्ह
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