२०३] सुधाकर-चन्द्रिका। ४४३ प्रवल। 1 भा-भया संयोग ॥ संगरामा = सङ्ग्राम = युद्ध । सुरुज = सूर्य । होद = होगा = होई (भविष्यति)। बिबाह = विवाह । वारि = वाटिका। बिधंसब = विध्वंस करना। वेधब = बेधना। राह =राज सर्पाकार वा मत्स्याकार लक्ष्य (निशाना)। जम = जैसे = यथा । जखा = ऊषा = वाणासुर को कन्या। अनिरुध = अनिरुद्ध = कृष्ण का पौत्र = प्रद्युम्न का पुत्र । मिला = मिल्दू (मिलति) का भूत-काल । मेटि = मिटाया = मर्दन । जादू = जाता (जायते)। लिखा = लिखा हुा । परबिला सोहाग = सौभाग्य । हदू = है (अस्ति) । पान = पर्ण । फूल = फुल्ल = पुष्य । भोगु भोग। आजु = अद्य । हुश्रा। चाहि = चाहता है। अस = ऐसा एतादृश । क = का। संजोगु वह सखी स्वप्न (का फल ) विचार कर बोली, कि जो कल देव के द्वार, वा देव को वाटिका में, तुम गई थी। (वहाँ देव की पूजा कर तुम ने बहुत विनय से (देवता को) मनाया था सो हे रानी (वही देवता) श्रा कर तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हुआ है। (स्वप्न में जो) सूर्य है वह पुरुष है और चन्द्रमा तुम रानी हो; (जान पडता है कि) भगवान् (सूर्य के ) ऐसा वर ला कर तुम से मिलावेगा। (स्वप्न में सूर्य पश्चिम से उदय हुआ है इस लिये) कोई पश्चिम-भूखण्ड का जो राजा है वह श्रा कर तुम्हारा वर (पति) होगा। फिर (स्वप्न में जो राम-रावण को लडाई हुई उस का यह फल है कि) सौता-समान तुम्हारे लिये कुछ युद्ध होगा; रावण (सिंहल के राजा तमारे पिता गन्धर्वसेन ) से (अवश्य ) सङ्ग्राम होगा। (स्वप्न में हनुमान् का वाटिका विध्वंस करना और अर्जुन का राहु बेधना, ए आगम जनाते हैं कि) चन्द्र (तुम ) और सूर्य (वह राजा) से विवाह होगा। जिस प्रकार ऊषा को (घर बैठे-हौ) अनिरुद्ध मिला (उसी प्रकार तुम को यहाँ-हौ पर वर मिलेगा; ब्रह्मा का) प्रवल लिखा हुआ मिटा नहीं जाता, अर्थात् ब्रह्मा ने जो ललाट में भला या बुरा लिखा है वह मिटता नहौँ, अवश्य-ही होता है। शोणित-पुर के राजा बलि के सौ पुत्रों में जेठा वाणासुर था। उस की कन्या ऊषा थी। उस ने स्वप्न में एक सुन्दर पुरुष को देखा ; जागने पर उस पुरुष के विरह बहुत व्याकुल हो गई ; उस को ऐसी दशा देख, उस को एक सखी चित्रलेखा ने उस समय के सब प्रसिद्ध सुन्दर पुरुषों का चित्र खौंच खौंच कर उस को देखाने लगी। कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध के चित्र को देख कर ऊषा ने कहा कि यही स्वप्न में मेरे पास आया था। फिर माया कर 1
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