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४३४ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [ १६६ भद = भई (बभूव)। दिमिटि दृष्टि । सउँ = साँ = से। ढरे = ढरद् (अवधरति) का भूत-काल में बहु-वचन । लौन्हा = लेदू (लाति) का भूत-काल में एक-वचन । जिउ = जीव । दीन्हा = देव (दत्ते) का भूत-काल में एक-वचन । चहत = चाहता था। परा पडा=परद (पतति) का भूत-काल में एक-वचन। पाल, पाले= पालिः (पालिः स्त्यश्यङ्कपङ्क्तिषु, अमरकोषे नानार्थव० लो. १४०६)। सुधि = शोध= खबर । पित्राल+ = प्याले में। प्याला = मद्यपीने का पात्र = चषक । माँति = मत्त हो कर = मस्त हो कर। गोरख = गोरक्षनाथ, प्रसिद्ध अवधूत । चेला = शिष्य । तन-तनु = शरीर । छाडि छाड कर = छोड कर (कुर छेदने से )। सरग = स्वर्ग । खेला = खेलति (खेल) का भूत-काल में एक-वचन। फिंगरी किं-करी= सारंगी से छोटा चिकारे के ऐसा एक बाजा ; आज कल पौरिए रखते हैं ; प्रथम बालक उत्पन्न होने पर लोगों के घर जा कर दूसो किंगरी को बजाते हैं। गहे = गहद् (ग्टहाति) से। हुत = था = श्रासीत् । बदरागी = वैरागी = जिस को विराग हो। मरतिहि = मरने की। बार = वार बेला

समय । उहदू = वही = स एव । धुनि = ध्वनि शब्द । लागी लग गई

लगदू (लगति ) का भूत-काल में एक-वचन ॥ = धन्धन = काम । लाग = लगद (लगति)। सपने हुँ= स्वप्ने हि = सपने में भी। सूझ सूझ सूझता है ( शुयते )। तपसौ = तपस्खौ। साधहिँ = साधदू (साधयति ) का बहु-वचन । करहिं = कर (करति) का बहु-वचन । बंध = बन्धन ॥ (मखी कौ) उस बात को सुन कर (पद्मावती) रानौ रथ पर चढौ ; (और कहने लगी कि) मढी में कहाँ ऐसा योगी है जिसे ( चल कर ) मैं देख ॥ सखिओं को संग ले कर तहाँ फेरा किया अर्थात् तहाँ पर गई, (उस समय ऐसी शोभा हुई जानों) अपाराओं ने योगिओं को घेर लिया हो ॥ ( पद्मावती के) कचूर से नेत्र प्रेम-मद से भर गए; वैसी ही मद भरी दृष्टि भी हो गई, जिस को धारा (एक वार हो) योगी (रत्न- सेन ) पर ढरक पडौं ॥ ( पद्मावती ने अपनी ) दृष्टि से योगी (रत्न-सेन ) की दृष्टि को लिया, अर्थात् पद्मावती और योगी को चार आँखें हो गई; नजर से नजर मिल गई; ( योगी ने पद्मावती के ) आँख हो के रूप से अर्थात् अाँख के रूपदर्शन ही से (अपनी) आँखो हौ से अपने जौ को दे दिया ; अर्थात् नेत्र को देखते ही अपने नेत्र-द्वारा ही अपने जीव को निकाल कर पद्मावती को सङ्कल्प कर दिया। (राजा रत्न-सेन) जिस नशे को चाहता था उसी के पाले पड गया एक ही प्याले में धंध ..