पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [३-४ किया ॥ तिस राजा के लिये बहुत विलास को किया, (छत्र, सिंहासन, सुन्दर भोजन श्रादि अनेक सुखोपभोग विलास हैं)। किसी को ठाकुर (मालिक) और किसी को दास किया ॥ द्रव्य को किया जिस को हो कर (पा कर ) गर्व (अभिमान ) होता है। लोभ को किया जिस के कारण कोई अघाता नहौँ ( पूर्ण नहीं होता) ॥ जीवन को किया जिस को सदा (सर्वदा) सब कोई चाहता है। मृत्यु को किया जिस से कोई नहीं रहता है अर्थात् मृत्यु सब को मार लेती है ॥ सुख और करोड अानन्द को किया । दुःख, चिन्ता और द्वन्द अर्थात् ममत्व को किया ॥ किसी को भिक्षुक और किसी को धनौ किया। सम्पत्ति (पुत्र, पौत्र, गो, धनादि वैभव ) और अति घनी ( कठिन ) विपत्ति को किया ॥ किसी को अति दुर्बल किया और किसी को बलौ किया। सब बस्तु को छार-हो से किया और अन्त में फिर सब को हार कर दिया ॥ ३ ॥ चउपाई। कौन्हेसि अगर कसतुरी बेना। कौन्तेसि भीमसेनि अउ चेना ॥ कौन्हैसि नाग मुखइ बिख बसा। कौन्ठेसि मंत्र हरइ जो डसा ॥ कीन्हेसि अमौं जिअइ जेहि पाई। कौन्हेंसि बिख जो मौंचु तेहि खाई ॥ कौन्हैसि ऊख मौठ रस भरौ। कौन्तेसि करुइ बेलि बहु फरौ ॥ कौन्तेसि मधु लावइ लेइ माँखौ। कौन्हेंसि भवर पंखि अउ पाँखौ ॥ कौन्हेंसि लोवा उंदुर चाँटौ। कौन्तेसि बहुत रहहिँ खनि माँटौ ॥ कौन्हसि राकस भूत परेता। कीन्हसि भोकस देव दण्ता ॥ - दोहा। कौन्दसि सहस अठारह बरन बरन उपराजि। भुगुति दीन्ह पुनि सब कह सकल साजना साजि ॥ ४ ॥ अगर = सुगन्धित एक वृक्ष । कसतरी= कस्तुरी मृगमद। बेना = वेण = खस । भीमसेनि = भौमसेनौ कर्पूर। चेना = चौन देश का कर्पूर । मुखद् = मुखे = मुख में । अौँ = अमृत । पाई = पान कर। करुद = कटु । मधु = शाहद् । माँखौ = मक्षिका = मक्खी। भवर = भ्रमर । पंखि = पक्षौ। पाँखौ= जिन जन्तुओं को ऋतु-विशेष में पर उत्पन्न हो
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