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४३० पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१६७ उरु अपर एक-वचन । =तमाशा । (प्रवारयति) का भूत-काल में एक-वचन । जदूस = जैसे = यथा। परेवा = पारावत ; यहाँ साधारण पक्षी। मरि भा = मर गया = मुर्दा हुआ। ई = ईश = महादेव । और। देवा = देव । विनु = विना । जिउ = जीव । नाउत = नापित नाऊ= नाई। श्रोझा = उपाध्याय = पुजारौ। पूरि= पूरौ= पूरिता। काल = मारने हारा। भा = भया (बभूव)। गोझा गुह्यक = एक प्रकार का पक्वान्न, जिम के भीतर मेवे इत्यादि भरे रहते हैं। जो = यः । देखदू = देखता है (दृशि प्रेक्षणे से )। जनु = जानों = जाने। बिसहर = विषधर = सर्प । डंसा = डसद् (दंशति) का भूत-काल में देखि = दृष्ट्वा = देख कर। चरित = चरित्र हँसा = हँसद (हमति) का भूत-काल में एक-वचन । भल = वर -अच्छा। हम= अहम् । श्रादू = एत्य = त्रा कर। मनावा = मनावद् (मानयति) का भूत-काल में एक-वचन । गा= गया ( अगात् )। सोदू = सो = खपित । मान = माने (मन्येत)। सेवा = टहल = खिदमत । पुरवद् = पुरवे पूरा करे ( पूरयेत् )। दुख = दुःख = तकलीफ। धोत्रा = धोवे = धो डाले [ धावु-(गतिशयोः) से ] । मनि = मानि = मान कर = संमान्य । श्राण = आए (दूण गतौ से)। सोई = एव = वहौ। तन = तनु = देह। सोश्रा = सोअद् (ते) का भूत-काल में एक-वचन ॥ जेहि जिसे। धरि = धृत्वा = धर कर = पकड कर। उठावहिँ = उठावदू (उत्थापयति) का बहु-वचन । सौस = शौर्ष - शिर । बिकल = विकल = बेचैन । डोल = डोल (दोलते) = डोलता है= हिलता है। धर अधर-भाग = गले के विना देह- भाग। कोई = कोई = कोऽपि । जान (जानाति) =जानता है। मुख मुह । बकत = बकता है (वक्ति ) । कु-बोल = कुत्सित-वाणी अंड बंड बोली। रानी ( पद्मावती) ने जैसा (विनय करना) जानती थी (वैसी ) इच्छा कर कर विनय किया और फिर हाथ जोड कर (सामने ) खडी हुई ॥ (बहुत देरी पर) मण्डप में से अकस्मात् शब्द हुआ कि (अरे पद्मावती तेरौ विनय-स्तुति) का उत्तर कौन देवे; देव तो (तेरे रूप-तेज से ) मर गया ॥ जैसे ( कोई ) पक्षी को काट कर (दो टुकडे कर) फेंक देवे, (उसी प्रकार दो टुकडे हो कर जब ) ईश (महादेव ) ही मर गया तो और देव कौन है (जो जीता हो) ॥ (मन्दिर के ) सब नाई श्रोझा ( पद्मावती के दर्शन से ) विना जीव के हो गए; (प्रसाद को) पूरिआँ जहर हो गई और गोझे काल हो गए ॥ जोई. ( पद्मावती को) देखता है (उस को ऐसौ दशा हो जाती है) जानों साँप ने = यस्य - =