४२४ पदुमावति । २० । बसंत-खंड। [१६४ दोहा। सैंदुर-खेह फर फल । फूलन्ह बाँध कर उठा तस गगन भप्रउ सब राति । राति सकल महि धरतौ राति बिरिख बन पाति ॥ १८४ ॥ फूल (फुल्ल = पुष्य ) का बहु-वचन । सब = सर्व । डार = डाल = डलरा = फल-फूल रखने का पात्र । श्रौढाई = ओढाई का बहु-वचन ; आढाई = श्रोढद् ( उपवेष्टते) का भूत-काल का एक-वचन । झूड = झुंड = यूथ । बाँधि कद (बद्धा)। पंचम - पञ्चम-खर । गाई = गाई का बहु-वचन, गाई गाव (गायति) का भूत-काल में एक-वचन । बाजहि = बाज (वाद्यते ) का बहु-वचन । ढोल = एक मुशलमानी बाजा। दुंदु = दुन्दुभि । अउ = अपर = और । भेरौ = दुन्दुभौ का एक भेद = नगारा । माँदर = मर्दल मृदङ्ग का एक भेद । तर = वर्य = तुरही। झाँझ = झन्झा। चहुँ फेरौ = चारो ओर । सिंग = श्टङ्गो = सौंग के बाजे। संख = शङ्ख = जन्तु विशेष के हड्डी का बाजा। डफ = डफला = एक मुसल्मानी प्रसिद्ध बाजा । बाजन = वाद्य = बाजा। बाजे = बज (वाद्यते) का भूत-काल में बहु-वचन । बंस-कार वंशाकार =वंशौ। महरि मधुकरी == एक तुम्बी का प्रसिद्ध बाजा, जिस के खर से साँप मोहित हो जाता है। सुर = खर । साजे= मज्जित किए = तयार किए = माजद् ( सज्ज ते ) का भूत- काल में बहु-वचन । अउरु = अपर । कहि = कहे जाते हैं (कथ्यन्ते) । जित = जितने ( यावन्तः)। भले = वर (श्रेष्ठ) का बहु-वचन । भाँति = भत्रौ = रचना विशेष ; भाँति भाँति तरह तरह के। बाजत -बजते हुए (वदन्तः)। चले चलदू (चलति) का भूत-काल में बहु-वचन । रथहिं रथों पर । चढौं = (उच्चलन्यः वा उच्छर्दन्यः) चढौ सूरत। मोहाई = शोभित हुई। लेदू = ले कर (नौत्वा वा ला धातु से क्वा)। बसंत = वसन्त-ऋतु। मढ = मठ । मंडफ =मण्डप। मढ-मंडफ मठ (मन्दिर) का मण्डप ; मण्डप = मन्दिर के द्वार के सामने छाया हुश्रा स्थान । सिधाई = सिधावद ( सिधु गत्याम्, स्वादि, सेधति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का बहु-वचन । नउल = नया। वेद = वे। बारी = वालिका = बाली। सेंदुर = सिन्दूर। बूका = बूका हुआ = चूर किया हुआ। होइ = होता है वा होती है (भवति )। धमारी धमार धर-मार, होली के दिनों में अपने मित्रों को पकड कर, उन के अङ्गों में अबौर को लगाने, उन से हसो ठट्ठा करने और गालो को गीत गाने को धमार कहते हैं। - नवल
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