२-३] सुधाकर-चन्द्रिका। - पलक भजने में जो काल लगता है, उसे निमेष कहते हैं । सो श्रोहि (उस को) करने में एक निमेष न लगा। एक-ही पल में सब को किया । यहाँ पल से निमेष का पल लेना चाहिए। नहीं तो जो पल प्रसिद्ध है, वह निमेष से बड़ा है तब पूर्वापर ग्रन्थ असङ्गति होगी। निमेष का साठवाँ भाग निमेष का एक पल होता है। अन्तरिक्ष में खंभा को बाजु (वर्जन कर अर्थात् छोड कर) विना आधार के गगन (आकाश) को रकवा है। मुसल्मानों के मत से श्राकाश भौ, और पदार्थों के ऐसा, एक पदार्थ है। परन्तु हमारे लोगों के मत से आकाश शून्य ॥२॥ चउपाई। कौसि मानुस दोन्ह बडाई । कीन्हैसि अन्न भुगुति तेइ पाई॥ कोन्द्रसि राजा भुंजइ राजू । कीन्हैसि हसति घोर तेहि साजू ॥ कौन्हेंसि तेहि कह बहुत बिरास्। कीन्हेंसि कोइ ठाकुर कोइ दास्त्र ॥ कौन्सि दरब गरब जेहि होई। कीन्हे सि लोभ अघाइ न कोई ॥ कौन्हेंसि जिन सदा सब चहा। कौन्लसि मौंचु न कोई रहा ॥ कौसि सुख अउ कोड अनंदू। कौन्हेंसि दुख चिंता अउ दंदू ॥ कौन्तेसि कोइ भिखारि कोइ धनौ। कौन्द्रसि सँपति बिपति बहु घनी। दोहा। कौन्हसि कोइ निभरोसो कोन्हसि कोइ बरिभार। छारहि तइँ सब कीन्हसि पुनि कीन्हैसि सब छार ॥३॥ मानुम = मनुष्य । भुगति = भुक्ति = भोजन । पूँजद् = भोग करता है। राजू = राज्य । हमति = हस्तौ । घोर = घोटक = घोडा। बिरामू = विलास । दरव = द्रव्य । गरब = गर्व । अघादू = अघा जाना = पूर्ण हो जाना = तृप्त हो जाना। जिवन = जौवन । मौंचु = मृत्यु । क्रोड = करोड = कोटि। दंदू = द्वन्द। निभरोसौ = जिस को किसी का भरोसा न हो = अत्यन्त दुर्बल । बरित्रार = बलिष्ठ । छार = भस्म = मनुष्य को किया और उसे बडाई दिया। क्योंकि ईश्वर को सृष्टि में मनुष्य सब से बडा गिना जाता है। अन्न को किया जिसे तिस मनुष्य ने भोजन के लिये पाया ॥ राजा को किया जो कि राज्य भोगता है। और तिस के साज के लिये हाथी और घोड़े को राखौ ॥ -
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।