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१४२ - १६३] सुधाकर चन्द्रिका। ४२१ . किसी ने श्राम को डार को पकड लिया; किसी ने विरह के ऐसे बहुत कडुए चंपे (को डार को) पकडा [चपे के वृक्ष के फूल का गंध बहुत कडुअा होता है, दूसौ लिये भ्रमर भी इस फूल का वास नहीं लेता इसी पर कवि को उत्प्रेक्षा है कि जैसा विरह (वियोग ) कडुश्रा है उसी प्रकार चंपा भी बहुत कडुअा है] । किसी ने नारङ्गी और किसी ने चिरौंजी की झाडौ को पकडा; किसी ने कटहर, किसी ने बडहर और किसी ने लौंजी लौची को डार को पकड़ा। किसी ने अनार, किसी ने और किसी ने खौरिनी को डार को पकडा; किसी ने सदाफल, किसी ने तुरुंज और किसी ने जम्बौर को डार को पकडा। किसी ने जायफल, किसी ने लौंग, किसी ने सोपारी, किसी ने कमरख, किसी ने गुश्रा और किसी ने छोहारे को डार को पकड़ा। किसी ने बिजौड, किसी ने नारिकेर को डार को और किसी ने जूरी को पकड लिया। किसी ने अमिलो, किसी ने महुश्रा और किसी ने खजूर को डार को पकडा । किसी ने हालफा-रेवडी, किसी ने कसैले औरे और किसी रायकरौंदे को डार को पकडा । किमो ने केले के घौर को पकड़ लिया, और किसी के हाथ में निम-कौडी ही पडी ॥ किसी ने नगीच हो (अपनी इच्छो को) पाया और किसी के लिये वह इच्छा दूर (निकल) गई। किसी का खेल जहर हो गया और किसी के लिये (वही खेल ) अमृत को जड हो गया; अर्थात् खेल में चोट लग जाने से बहुत सखियाँ गिर पडौँ, लिये खेल जहर हो गया; और बहुत सौ मखिर बाजी जीत गई, अमृत- फलों को भी पा गई; इस लिये उन के लिये वही खेल अमृत हो गया। (२८ और ३४ दोहे की चौपाओँ को भी देखो) ॥ १८२ ॥ उन चउपाई। पुनि बौनहिँ सब फूल सहेली। जो जेहि आस पास सब बेलौ कोइ केवरा कोइ चाँप नेवारौ। कोइ केतकि मालति फुलवारी ॥ कोइ सतिबरग कूँद अउ करना। कोइ चइलि नगेसरि बरना ॥ कोइ सो गुलाल सुदरसन कूजा। कोई सोनिजरद भल पूजा ॥ कोइ सो मउलप्सिरि पुहुप बकउरौ। कोइ रूप-माँजरि अउ गउरौ ॥