१६१ - १६२] सुधाकर-चन्द्रिका। ४१६ क्रीडा। भा=भया बजल। - जो जलते हुए तृण पत्ते ऊपर उड कर फिर बुझ कर नीचे गिरते हैं। श्राजु = अद्य = आज । साजि मजा कर = मज्जयित्वा। दूजा = द्वितीय = दूसरा। खेल = खेला (हुश्रा)। आपसु = आयम = आज्ञा। बहुरि = भूयः = फिर करब = करेंगी (कर्त्तव्यम् )। फेरा = स्फुरण = भ्रमण । तम = तथा = तैसौ । होइहि = होगी (भविष्यति)। रखवारी= रचा = रक्षण = रखवाली। बारौ= वाटिका॥ र= अरे। चलब = चलेंगी (चलितव्यम् )। घर = ग्रह। आपुन = अपने। पूजि - पूजा कर ( पूजयित्वा)। बिसेसर = विश्वेश्वर । देउ = देव = महादेव । होहद = होवे (भवेत् ) । खेल = खेलन । हँसि = हँस कर (हमित्वा)। लेउ = लेश्रो ॥ कमल ( पद्मावती) के सहाय के लिये फुलवारियाँ ( सब सखी सहेलियाँ ) चलौँ , (ये सखी सहेलियाँ ) फल फूलों की इच्छा-बारौ हैं, अर्थात् ये ऐसौ बाटिका है कि जो फल फूल की इच्छा हो सब देने वाली है। अपने अपने में प्रणाम करती है (और कहती है कि) यह वसन्त सब का तिहवार है। चाह से मनोहर झूमक होता है या चाह से मनोहरा और झूमक होता है [ किसी विशेष मङ्गल में सब से पहले जो गीत गा कर देव-पूजन करते हैं उस गीत को स्त्रियाँ मनोरा (मनोहरा ) कहती हैं, और उस पूजन को मनोरा-पूजा कहती है (कहती हैं कि मनोरा पूजा जाता है)] । फाग खेल कर फिर होली जलाऊँगी; राख को समेट कर झोरी उडाऊँगी, अर्थात् झोरी को झोरी राख उडाऊँगी। आज के ऐसा दूसरा दिन नहीं है, आज तयारी कर, (और महादेव को ) पूजा कर, वसन्त (वसन्तोत्सव ) में खेल लेो। पद्मावती को श्राज्ञा हुई कि फिर हम लोग पा कर ( यहाँ ) न घूमगौ ॥ हम लोगों की तैसी रख-वाली होगी कि फिर कहाँ हम लोग और कहाँ यह वाटिका होगी। अरे (मखिो) (हम लोग) विश्वेश्वर महादेव की पूजा कर फिर अपने अपने घर चलेंगी, सो जिस को खेलना हो आज हमी खुशी से खेल लेश्रो ॥ १६१ ॥ चउपाई। काहू गही आँब कइ डारा। काहू बिरह चाँप अति झारा ॥ कोइ नारंग कोइ झार चिरउँजी। कोइ कटहरि बडहर कोइ नउँजी ॥ कोइ दारिउँ काइ दाख सो खीरी। कोइ सदाफर तुरुंज जंभौरी ॥ कोइ जइफर कोइ लउँग सुपारौ। कोइ कमरख कोइ गुणा छोहारी॥
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