४१८ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१९१ श्राप कवल = कमल। सहाय = सहायक । चलौं = चलदू (चलति) का प्रथम-पुरुष मैं भूत-काल का बहु-वचन । फुलवारी = फुल्लवाटिका = पुष्पवाटिका । फर = फल । फूलन्ह फूल (फुल्ल ) का बहु-वचन। कद् = को। बारी= वाटिका = बगौचा। श्रापु = (आत्मा) = अपने । करहिं = कर (करोति) का बहु-वचन । जोहारू = हे जीव-हार = प्रणाम । तेवहारू = तिहवार = पर्व । चहदू = चाह से = खुशी से। मनोरा = मनोहर मनोहरा। झूमक = स्त्रियाँ साथ हो कर झूम झूम कर जो गाती हैं उस गान को झूमक कहते हैं । होई = होइ (भवति) = होता है। लिउ = लिए। फागु = फाल्गुन का उत्सव । खेलि = खेल कर (खेलित्वा)। दाहब = जलावेगी = (दाहयिष्यामः) । होरौ= होली = होलिका (फाल्गुन की पूर्णिमा को रात्रि में प्रत्येक ग्राम की सीमा में काठ सरपत का टाल लगाया जाता है; उसे होली या होलिका कहते हैं; गाव के लोग एकट्ठी हो कर मन्त्र पढ कर उस में भाग लगाते हैं, उस को प्रदक्षिणा करते हैं, और आपस में एक दूसरे को गाली देते हैं ; होलिका-माहात्म्य में लिखा है कि उस दिन ग्राम में ढुण्डि राक्षसी आती है और लड़कों को दुःख देती है, इस लिये सीमा पर श्राग बारना और ललकार ललकार गाली देना जिम में वह डर से ग्राम में न आने पावे (भगलिङ्गाङ्कितैः शब्देस्त्राशयेत् ढुण्डिराक्षसौम्); यह रौति बढते बढते ऐसो बढ गई कि अब लोग श्रापस ही में गाली बकते हैं। पुराणों में यह भी कथा है कि हिरण्याक्ष दानव की बहिन होली थी; वह जब स्नान करने लगे तो उस के भाग निकले। हिरण्याक्ष ने अपने पुत्र प्रह्लाद को, जो कि पिता के मत से विरुद्ध वैष्णव हो गया था, जलाने के लिये स्नान के समय अपनी बहिन के गोद में डाल दिया; दैव-संयोग से उस दिन होली ही जल गई प्रह्लाद बच गया; प्रह्लाद के संगी लडके ताली पोट पोट कर खुशी से होली को गाली देने लगे। उसी दिन से प्रतिवर्ष लोग उस को नकल करने लगे। प्राचीन समय में यह रीति थी कि होली की जली हुई भस्म को एकट्ठाँ कर झोरियों में रख आपस में एक दूसरे के देह में पोतते थे और खुशी से गाली बकते थे, पर अब भस्म की जगह अबीर लगाते हैं। होलिका-माहात्म्य में लिखा है कि होली को जला कर उस दिन डोम को छूना चाहिए। सैंतब = मैं तेगौ = एकट्ठाँ करेंगी ( समेष्यति) । खेह = धूलि = धूर (खे आकाशे ईहा इच्छा यस्य ) । उडाउब = उडावेगौ = उडावद् का उत्तम-पुरुष में भविष्यत् काल में बह-वचन। झोरी= थैली, वा झोल = जलने के समय . . - -
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५२४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।