१८१ -१२] सुधाकर-चन्द्रिका। ३८८ अकेला न छोडे (दूस लिये ) मोरह हजार राज-कुमार चेला हुए (और संग में चले )। और संग में जो सहायक (चले उन को) कौन गिने ; ( इस प्रकार वह ) जा कर महादेव के मठ में मिला है अर्थात् उतरा है। (वह) सूर्य-पुरुष (तुम्हारे) दर्शन के लिये ( चारो ओर) देख रहा है, जैसे चकोर चन्द्र के लिये चारो ओर देखे ॥ तुम थोडौ अवस्था को जिस रस के योग्य हो जैसे कि कमल में सुगन्ध-रस, तैमा-हौ सूर्य को प्रकाश कर, अर्थात् तुम्हारी प्रशंसा से उस के हृदय में विरह-रूपौ सूर्य का प्रकाश कर (उस ) भ्रमर (रत्न-सेन ) को ले आ कर, मिलाया है ॥ १८१ ॥ चउपाई। हौरा-मनि जो कही यह बाता। सुनि कइ रतन पदारथ राता ॥ जस सूरुज देखइ होइ आपा। तस भा बिरह काम-दल कोपा ॥ पइ सुनि जोगी केर बखानू । पदुमावति मन भा अभिमानू ॥ कंचन जउ कसिअइ कइ ताता। तब जानहु दहुँ पौत कि राता ॥ कंचन-करौ न काँचुहिँ लाभा। जउ नग होप पावइ तब सोभा ॥ नग कर मरम सो जरित्रा जाना। जुरइ जो अस नग हौर बखाना ॥ को अस हाथ सिंघ-मुख घालइ। को यह बात पिता सउँ चालइ ॥ दोहा। सरग इंदर डरि काँपइ बासुकि डरइ पतार । कहँ अस बर पिरिथुमौं मोहिँ जोग संसार ॥ १८२ ॥ होरा-मनि = होरा-मणि, शुक। कही = कहा का स्त्रीलिङ्ग (कहा, कथ व्यक्तायां वाचि से हुआ)। बाता= वार्ता = बात । सुनि कदू = सुन कर = श्रुत्वा । रतन = रत्न। पदारथ = पदार्थ = वस्तु (पद्मावती)। राता = रक्त = लाल। सूरुज = सूर्य। देखदू देखता है ( दृश्यते ) । होइ हो कर (भूत्वा )। श्रोपा = उप = श्रातप । तस = तथा = तैसेई । भा = हुआ = बभूव । बिरह = विरह = वियोग । काम-दल = काम को सेना । -
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