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३८८ पदुमावति । १६ । सुग्रा-भेंट-खंड । [१८१ HT= बाउर सुनि कद् = श्रुत्वा = सुन कर। बिरह = विरह = वियोग = जुदाई । चिनगि = चित्- कण = श्राग को कनौ = स्फुलिङ्ग । परौ = परद (पतति) का प्रथम-पुरुष में लिट का एक-वचन । रतन = रत्न। पाउ = पाता है (प्राप्यते)। जउ = यदि । कंचन = कञ्चन = मोना। करी= कली कलिका । कठिन = कडा । पेम = प्रेम । दुख = दुःख । भारी जिस में भार (बोझा) हो। राज राज्य । छाडि = छोड कर (श्राछोय)। हुआ (बभूव) । जोगि = योगौ । भिखारौ = भिक्षुक ( भिक्षालु)। मालति = मालती एक बरसात का लता-पुष्प । लागि = लग कर (लगित्वा ) = लिये। भवर = भ्रमर । जस = यथा = जैसा। होई = होता है (भवति)। हाद = हो = हो कर (भूत्वा)। वातुल = बौरहा। निसरा = निःमसार = निकला। बुधि = बुद्धि। खोई खो कर = गवाँ कर। कहेसि = कहा (कथ व्यक्तायां वाचि से बना)। पतंग = पतङ्ग फतिंगा । धनि = धन्या - पद्मावती। लेॐ = लेवें= लेदू (लाति) का सम्भावना में उत्तम- पुरुष का एक-वचन। सिंघल-दीप = सिंहल-दौप। जादू = जा कर (यात्वा)। जौउ - जौव । देॐ = देवें = देदू (दत्ते) का सम्भावना में उत्तम-पुरुष का एक-वचन । अकेला एकलः = एकाको। सोरह = षोडश। महम सहस्र। कुर = कुमार राज-कुमार। भy = भए = हुए (बभूवुः) । चेला = शिष्य । गनदू = गने = गणयेत् । सहाई = सहाय = सहायक। महादेवा = महादेव । मढ= मठ = मन्दिर । मेला = मिले = डेरा किए (मिल मङ्गमे से )। जाई = जादू =जा कर। सूरुज = सूर्य । पुरुम = पुरुष। दरस = दर्शन । कद् ताई = के लिये। चितवद = (चेतयति वा चिन्तयति) = देख रहा है। चाँद = चन्द्र । चकोर = एक पक्षौ। नाई = निभ = सदृश बारी= बालिका थोडी अवस्था को या वाटिका। जोग = योग्य। कवलहि = कमल में। अरघानि = श्राघ्राण सुगन्ध । परगास = प्रकाश । मिलापॐ = मिलाया (मेलयेयम् ) । श्रानि = पानीय = ले पा कर ॥ (दस बात को) सुन कर उस के (हृदय में) विरहाग्नि को कनौ पड़ गई, (मच है ) यदि कञ्चन की कली हो (तभी) रत्न को पाता है। प्रेम ( होने ) से विरह का दुःख कठिन और भारी होता है; (वह) राज्य छोड कर भिखारी हो गया। मालती के लिये भ्रमर को जैमी (दशा) होती है; (तैसे-हौ) बुद्धि खो कर, पागल हो कर (घर से बाहर निकला। कह कि फतिंगा हो कर (उस ) धन्या (पद्मावती) को लेऊँ और (उस के लिये) सिंहल-द्वीप में जा कर जी को देऊँ। फिर उसे कोई बराबर ॥