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श्रीजानकीवल्लभो विजयते । JFO800- अथ सुधाकर-चन्द्रिका लिख्यते । दोहा। लखि जननी के गोद विच मोद करत रघु-राज । होत मनोरथ सुफल सब धनि रघु-कुल सिरताज॥ जनक-राज-तनया सहित रतन-सिँहासन आज । राजत कोशल-राज लखि सुफल कर सब काज।। निहचै निज जन जानि जो ऊँच नीच तजि मान । मिले हरखि निज बंधु ज्याँ ताहि भजन हित जान ॥ का दुसाधु का साधु जन का विमान संमान । लखड सुधाकर-चन्द्रिका करत प्रकाश समान ॥ मलिक मुहम्मद मति-लता कविता कनक वितान । जोरि जोरि सुवरन वरन धरत सुधाकर सान ॥ 1