१६६] सुधाकर-चन्द्रिका। लाभा असतुति स्तुति । जउ = यदा = जब । बहुत = बहुतर । मनावा = मनावद (मान- यति) का पुंलिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । सबद = प्राब्द = आवाज । अकृत श्राकृतम् = इच्छा-सूचक = अकस्माद् वाणी। मॅडप = मण्डप। श्रावा = श्रावद (श्रायाति) का पुंलिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । मानुस मानुष = मनुय्य। पेम-प्रेम । बदकुंठी वैकुण्ठी = वैकुण्ठ जिम को हो, अर्थात् देवता। त = तो। काह = क्व हि = क्या। छार क्षार = राख = राखौ। प्रक = एक । मुंठौ = मुष्ठि = मुट्ठौ। बिरह = विरह = वियोगाग्नि। रसा= रस = अमृत-रम । मयन = मदन = काम-देव । वा, मधु- मक्खियों का मोम। मधु-अंब्रित = मध्वस्त शहद जो अमृत । बसा = बस (वसति) का पुंलिङ्घ मैं भूत-काल का एक-वचन। वा, बमा = वमा = बरैं। निमत = निःसत्, वा निःसत्य -जिस में मत् वा मत्य न हो। धादू = धाय कर = दौड कर । जउ = = यदि। मर मरे मरद (मरति) का सम्भावना में प्रथम-पुरुष का एक-वचन। ता = तर्हि = तदा। काहा = काह = क्या। मत = मत् मच्चा। बठि = उपविश्य = बैठ कर। लाहा = = लाभ = प्राप्ति। बार = वार = मर्त्तव = दफे। सेवा सेवदू ( सेवते ) का पुंलिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन। परसन = प्रसन्न = खुश। देवा -देव = देवता। सुनि कई = सुन कर। झनकारा= झणत्-कार = झन झन । बहठहु = बहठ (उपविशति) का आज्ञा में मध्यम-पुरुष का बहु-वचन। श्रादू = आगत्य = श्रा कर । पुरुब = पूर्व दिशा । = वार = द्वार । पिंडु = पिण्ड = शरीर = देह । चढादू चढा कर। जत = जितना। आँटी= अँटे = प्राप्त हो = पर्याप्त हो । माटौ = मट्टी = मृत् = मृत्ति अंत = अन्त में ॥ मोल = मूल्य = कौमत। किछु = किञ्चित् = कुछ । लहदू = (लभते) लाभ होता है = प्राप्त होता है। दिमिटि = दृष्टि ॥ (राजा) स्तुति कर जब (महादेव को) बहुत मनाया (मनावा ), (तब) मण्डप में से अकस्मात् शब्द आया, अर्थात् राजा के लिये श्राकाश-वाणी हुई॥ (कि) मनुष्य प्रेम(-ही) से देवता हुआ है, अर्थात् देवता हो जाता है, नहीं तो (मनुय्य) क्या है ?, अर्थात् कुछ नहीं है; (केवल ) एक मुट्ठी राख है ॥ प्रेम-हो के बीच विरह और रम (दोनों भरे) हैं। (जैसे ) मदन के घर (मदन-मन्दिर = योनि ) मधु (मदिरा) और अमृत (दोनों) बसते हैं, अर्थात् अनुचित रौति से उस घर में व्यवहार करने से मनुष्य को मधु (मदिरा) सदृश, बुद्धि और शरीर के नाश करने-वाले उपदंशादि अनेक रोग हो जाते हैं, और उचित रीति से व्यवहार करने में अमृत-रस-सदृश बारा = यतमा 1 = .
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