१६७] सुधाकर-चन्द्रिका। २६८ - - जिस का वर्णन २८३ दोहे में कर पाये हैं, कि 'गुत्रा सुपारी जाइफर सब फर फरे अपूरि' उस में ) भर पूर सब अमृत फल लगे हैं। और तहाँ सञ्जीवनी मूरि (भी) लगौ है (जिस से लक्ष्मण को शक्ति-जनित मूळ निवृत्त हो गई थौ) ॥ मण्डप चार मुख का है, अर्थात् मण्डप को चारो दिशा में एक एक द्वार है, (और) चारो ( द्वारों में ) कवाडे (लगे) हैं। चारो दरवाजे पर देवता बैठे हैं, अर्थात् चारो दरवाजाँ पर अनेक देवमूर्ति बनी हुई हैं। मण्डप के भीतर (छोटा मा और मण्डप है, जिस में ) चार खंभे लगे हैं । (उमौ में मुख्य महादेव जी हैं), जो लोग उन (खंभों) को छूते हैं, अर्थात् श्रद्धा से स्पर्श करते हैं, तिन के पाप भाग जाते हैं । वहाँ (सोई) पर, शङ्ख, घण्ट, घन (झाँझ, मंजौरा इत्यादि) बजा करते हैं। और तहाँ बड, अर्थात् नाना प्रकार के, होम जाप होते हैं, अर्थात् मनोरथ पूरा होने से जिम जिस प्रकार की मनौती लोग किये रहते हैं, तिस तिम प्रकार के होम और जप हो रहे हैं। ( उस ) महादेव के मण्डप में जगत् के लोग यात्रा (तीर्थ-यात्रा) के लिये जाते हैं। जिस के मन में जैसौ इच्छा रहती है, वह (मो) तैमा-हौ फल पाता है, अर्थात् कोढी काया, बाँझ वंश, और दरिद्री धन इत्यादि पाते हैं ॥ १६ ॥ . 9 इति सिंहल-दौप-भाव-खण्ड-नाम षोडश-खण्डं समाप्तम् ॥ १६ ॥ 47
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