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३६८ पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । =कपाट- घण्टा। घन पद्मावती। रानौ = राज्ञो। सर्वरि = संस्मृत्य = स्मरण कर = सुमिर कर। लता = वल्ली = प्राण-लता = प्राण को वल्ली। परबत = पर्वत। कहँ = को। जा = जो= जैसे-हो। परबता = पार्वतीय = हीरा-मणि शुक। चढि = चलित्वा चढ कर। देखद् (दृश्यते) देखता है। मंडप = मण्डप । सोन = स्वर्ण का = सोने का। साजा = माजद् ( सन्जयति ) का भूत-काल में एक-वचन । अंत्रित अम्मत। फर = फल। लागु = लाग = लगद (लगति) का भूत-काल में बह-वचन = लगे हैं। अपूरी= श्रापूर्य = भर कर =भर पूर । सजीअनि सञ्जीविनी = जिलाने-वाली। मूरी = मूलौ = मूलिका। चउ-मुख = चतुर्मुख =चार मुख का। चह= चारो। केवारा केवाडा = दरवाजा। बइठे ( उपविष्टाः) = बैठे हैं। दुवारा= द्वार = दरवाजा । भीतर = अभ्यन्तर । चारि = चार। खंभ = स्तम्भ खंभा। लागे = लगे == लगदू (लगति) का भूत-काल बहु-वचन लगे हैं। छुअद् (छुपति) = छूता है। पाप = दुष्कर्म से अनिष्ट । भागे भगदू (वजति = व्रजति) का बहु-वचन = भागहिँ = भागते हैं। संख = शङ्ख = एक जलजन्तु को मृत अस्थि-मय देह, जिसे पूजा के समय लोग बजाते हैं। घंट= घण्ट पीतल का, जो देवता के मन्दिर में बजाया जाता है कांस्य (काँसे ) के और बाजे (ततं वीणादिकं वाद्यमानद्धं मुरजादिकम् ॥ वंशादिकं तु सुषिरं कांस्यताला- दिकं धनम् । चतुर्विधमिदं वाद्यं वादित्रातोद्यनामकम् ॥ अम० को० । प्र० का । नाय्यवर्ग। श्लो० २०३-२०४ ) = झाँझ, मॅजौरा, विजय-घण्ट इत्यादि। बाजहिँ = बाजदू ( वाद्य ते ) का बहु-वचन। बहु = बहुत। होम हवन = भाग में मन्त्रों को पढ पढ कर, त इत्यादि को आहुति डालना । जाप = जप मन्त्रों को अभीष्ट-सिद्धि के लिये। जगत् के लोग । जातरा = यात्रा = तीर्थ-यात्रा । श्राउ = श्रावद् (आयाति) आता है। हौंछा = हि-दूच्छा = निश्चय से दूच्छा । तसद् = तथा हि = तैसा-हौ। पाउ=पावद् (प्राप्नोति) = पाता है ॥ होरा-मणि (दूस प्रकार से ) वचन कहानी दे कर, अर्थात् वचन से उपाय बता कर, जहाँ पद्मावती रानी (रहती थौ तहाँ ) चला ॥ जैसे-हौ पर्वत का रहने-वाला (शुक) चला, (तैसे-हौ) राजा (भौ) उस (मो ) लता ( पद्मावती) को स्मरण कर, पर्वत को चला, अर्थात् सिंहल्ल-स्थ देव-मण्डप के यहाँ जाने के लिये पर्वत पर चढा ॥ राजा पर्वत पर चढ कर, क्या देखता है, (कि) ऊँचा मण्डप सब सोने से साजा हुआ है, अर्थात् उस महादेव के मन्दिर का मण्डप खर्ण-मय है ॥ ( और उस के चारो ओर जो बाटिका है, जगत -