३५८ पदुमावति । १६ । सिंघल-दीप-भाउ-खंड । [१६० - अाधा = अर्ध 1 गढ = गाढ = दुर्ग = किला। देखु = देखदू (दृश्यते ) का लोट में मध्यम-पुरुष का एक-वचन । गगन = -श्राकाश । तद् = = से। ऊँचा= उच्च । नयन -आँख। देखि = दृष्ट्वा देख कर। कर हाथ । नाहिँ न हि = नहौं । पहँचा = पहुँचा = पहुँचद् (प्रभुत्वति, प्राकृत पहुच्चदू) = पहुँचता है। बिजुरौ = विद्युत् = बिजुली। चकर = चक्र। फिरहिँ = फिरदू (स्फरति) का बहु-वचन। चहुँ = चारो। फेरे= ओर = प्रान्त । जमकात= यमकास्त्र
जोडे (दोहरे) अस्त्र । वा, जमकात = यमकर्तरी = यम को कैची। जम = यम
प्राण लेने-वाले यमराज । धादू = धाय कर = दौड कर (धावति से ल्यप् )। बाजा = बाजदू (ब्रजति =वजति) का भूत-काल में एक-वचन । साधा = श्रद्धा=साध=दूच्छा। = खण्ड = टुकडा। चाँद चन्द्र । सुरुज = सूर्य । नखत = नक्षत्र । तराई तारा = तरई। डर = दर भय। अंतरिख = अन्तरिक्ष = आकाश और भूमि के बीच में। सबाई = सब = सभी। पवन = वायु
हवा । पहुँचा = पहुँचना। चहा = चाहा
इच्छा किया = चहद् (चदति वा इच्छति) का भूत-काल में एक-वचन। मारा = मार (मारयति) का भूत-काल में एक-वचन । तदूस = तथा = तैसा। टूटि = त्रुटिवा टूट कर। भुइँ = भुवि = पृथ्वौ में । बहा = बहदू (वहति) का भूत-काल में एक-वचन । श्रगिनि अग्नि - आग। उठी = उठद् (उत्तिष्ठते) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । जरि = जलित्वा = जर कर = बर कर। बुझी बुझदू (बुतति) का स्त्री-लिङ्ग में भूत-काल का एक-वचन । निशाना = निदान, निशाना = निरन्य = विना अन्य = विना सहायक । धुओं = धूम = धूआँ । उठि उत्थाय = उठ कर। बिलाना = विलीन हो गया = लय हो गया = लोप हो गया। पानि पानीय = पानी। छूश्रा = कुत्रा = छुअद् (स्पृश्यते) का भूत-काल में एक-वचन । बहरा=बहरदू (अवरोहति) का भूत-काल में एक-वचन। रोदू = रुदित्वा =रो कर। श्रादू = श्रागत्य = श्रा कर। चूना = चुत्रा = चुपद् (च्यवते ) का भूत-काल में एक-वचन ॥ रावन रावण। सउँह = शपथ = सौंह = कसम = प्रतिज्ञा। उतरि = उतर (उत्तरण) = कट। दश । माथ = मस्तक = शिर । संकर = शङ्कर = महादेव । धरा धरद् (धरति) का भूत-काल में एक-वचन । ललाट =भाल = मस्तक = माथा। जोगौ-नाथ = योगि- नाथ = योगियों का राजा ॥ (शुक कहता है, कि राजा) देख वह (मो) गढ श्राकाश से (भौ) ऊँचा है। आँख से देख कर (भी वहाँ) हाथ नहीं पहुंचता है, वा आँख देख कर (भौ) = ) (